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देहरादून में पहली चुनावी रैली में जिस तरह राहुल गांधी ने स्वयं का उत्तराखंड से संबंध स्थापित किया

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव कांग्रेस बनाम मोदी का स्वरूप न ले सके, इसके लिए कांग्रेस ने सुविचारित रणनीति के तहत पार्टी के सबसे बड़े चेहरे राहुल गांधी को आगे कर दिया। देहरादून में पहली चुनावी रैली में जिस तरह राहुल गांधी ने स्वयं का उत्तराखंड से संबंध स्थापित किया, उससे साफ हो गया कि कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्तराखंड से जुड़ाव के असर को कम करना चाहती है। जहां तक रैली की कामयाबी का सवाल है, तो अगर जुटी भीड़ को पैमाना माना जाए, तो कांग्रेस इससे राहत महसूस कर सकती है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उत्तराखंड से नाता वर्षों पुराना है, जब वह सक्रिय राजनीति में भी नहीं आए थे। केदारनाथ के निकट गरुड़चट्टी में मोदी ने तपस्या की थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद वह निरंतर उत्तराखंड आते रहे हैं। केदारनाथ धाम पुनर्निर्माण उनका ड्रीम प्रोजेक्ट है। साथ ही चारधाम आल वेदर रोड परियोजना भी नमो की ही देन है। न केवल उत्तराखंड, अपितु अन्य राज्यों में भी वह उत्तराखंड से अपने लगाव को जाहिर करते रहे हैं। वर्ष 2014 में जब मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने लोकसभा चुनाव लड़ा, तब से उत्तराखंड में भी उनका जादू चल रहा है। भाजपा दो लोकसभा चुनाव में पांचों सीट और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज कर ऐतिहासिक प्रदर्शन करने में सफल रही।कांग्रेस इस तथ्य को भलीभांति समझती है कि अगर उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में पार्टी को मोदी मैजिक से मुकाबला करना पड़े तो उसके लिए मुश्किल काफी बढ़ जाएगी। इसीलिए कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की चार दिसंबर की देहरादून में हुई रैली का जवाब गुरुवार को राहुल गांधी की रैली से दिया। महत्वपूर्ण बात यह कि राहुल गांधी ने अपने लगभग 27 मिनट के संबोधन में अधिकांश समय स्वयं के उत्तराखंड से रिश्ते के उल्लेख को ही दिया।

दून स्कूल में बिताए वक्त की बात हो या फिर देश के लिए बलिदान की, राहुल ने गांधी परिवार और उत्तराखंड के सैन्य परिवारों में आपसी समानता का उल्लेख ही अधिक किया।कांग्रेस के प्रांतीय नेताओं ने भी यह स्थापित करने की अपनी ओर से पूरी कोशिश की कि राहुल गांधी और उनके परिवार का उत्तराखंड से पुराना और गहरा नाता है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने वर्ष 2013 की आपदा के बाद राहुल गांधी के सबसे पहले केदारनाथ पहुंचने का जिक्र अपने संबोधन में किया। उनका पूरा प्रयास रहा कि राहुल गांधी को उत्तराखंड में प्रधानमंत्री मोदी के आभामंडल के प्रभाव को न्यून करने के लिए उनके समक्ष खड़ा कर दिया जाए। अब कांग्रेस की यह रणनीति कितनी कारगर रही, यह आगामी विधानसभा चुनाव तक सामने आ जाएगा।राहुल गांधी ने अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी को तो बार-बार निशाने पर लिया, लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार पर उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला। उत्तराखंड में पिछले पांच वर्षों से भाजपा सत्ता में है, इस दौरान तीन मुख्यमंत्रियों के हाथ कमान रही, लेकिन कांग्रेस के सबसे बड़े नेता ने इस ओर खामोशी ही ओढ़े रखी। राजनीतिक गलियारों में इसके कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। अब यह भी राहुल की रणनीति का ही हिस्सा था कि केवल प्रधानमंत्री पर ही हमला करना है या वह ऐसा करना भूल गए, इसे लेकर कांग्रेस के भी अलग-अलग तर्क हैं।

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