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जंगलों में रोपे पौधों के जीवित रहने की दर 10 प्रतिशत बढ़ी, वन प्रभागों को दिया जाएगा पुरस्कार

विषम भूगोल और 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में पौधारोपण को लेकर विभाग अब संजीदा हो गया है। पहली बार यह दावा किया गया है कि जंगलों में पौधों के जीवित रहने की दर में 10 प्रतिशत वृद्धि हुई है।

 

वन मंत्री सुबोध उनियाल ने विभाग मुख्यालय में पौधारोपण की समीक्षा बैठक के बाद जानकारी दी कि पौधारोपण की दर 54 प्रतिशत आंकी गई है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में यह दर 44 प्रतिशत थी। तीन साल के आंकड़ों के आधार पर ही इसका मूल्यांकन होता है।

 

 

जंगलों में होने वाले पौधारोपण को लेकर हमेशा ही अंगुलियां उठती आई हैं। राज्य में हर साल औसतन डेढ़ करोड़ पौधे लग रहे हैं, लेकिन इनके जीवित रहने की दर पर विभाग खामोशी ओढ़ लेता था। वह भी तब जबकि पौधारोपण नीति में हर तीन साल में इसके मूल्यांकन का प्रविधान है।

 

अब विभाग ने इस दिशा में निरंतरता में नजर रखनी शुरू की है। पौधारोपण की समीक्षा बैठक के बाद वन मंत्री उनियाल ने कहा कि हमारा लक्ष्य पौधों के जीवित रहने की दर को 70 से 75 प्रतिशत की आदर्श स्थिति में ले जाने का है। इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। जिन वन प्रभागों में पौधारोपण की सफलता दर बेहतर रहेगी, उन्हें प्रतिवर्ष पुरस्कृत किया जाएगा। जल्द ही पुरस्कार की रूपरेखा तय की जाएगी।

 

पहाड़ में पांच साल तक होगी देखभाल

एक प्रश्न पर वन मंत्री ने कहा कि पौधारोपण नीति में विभागीय पौधारोपण में रोपित पौधों की तीन साल तक देखभाल का प्रविधान है। अब इसे पांच साल तक किया जाएगा और वह भी विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्र में। यदि जरूरत पड़ी तो इससे आगे भी बढ़ा जाएगा। कैंपा के तहत होने वाले पौधारोपण में मानीटरिंग का प्रविधान पहले ही 10 साल है।

 

चारा फलदार प्रजातियों पर जोर

उन्होंने बताया कि पौधारोपण नीति में चारा, ईंधन, औषधि व फलदार पौधों के रोपण का निश्चित प्रतिशत पहले ही तय है। अब चारा और फलदार प्रजातियों पर अधिक जोर दिया गया है। इस बात की चिंता भी की जा रही है कि गर्मियों में घास की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।

 

क्षेत्र विशेष के आधार पर बने योजना

वन मंत्री के अनुसार यह निर्देश दिए गए हैं कि क्षेत्र विशेष की परिस्थितियों के आधार पर पौधारोपण की कार्ययोजना बनाई जाए, ताकि इसमें स्थानीय प्रजातियों को महत्व मिल सके। पौधारोपण में जनसहयोग पर विशेष जोर है।

 

यह निर्देश दिए गए हैं कि पौधारोपण के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों व वन पंचायतों की नर्सरी से ही पौध खरीदी जाए। निजी नर्सरियों से पौध नहीं खरीदी जाएगी। वन प्रभागों में तकनीकी सहयोग के दृष्टिगत जूनियर व सीनियर रिसर्च फेलो की प्रभागवार नियुक्तियां की जाएंगी।

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