भारत के संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की 132वीं जयंती की पूर्व संध्या पर भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा आयोजित विशेष व्याख्यान को संबोधित करते हुए पूर्व राज्यसभा सांसद एवं पुणे विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. नरेन्द्र जाधव ने कहा कि अंबेडकर ने अपना जीवन विषम परिस्थितियों में व्यतीत किया और उनके संघर्ष ने लाखों लोगों को उम्मीद दी। उन्होंने कहा कि भारत को इतना व्यापक संविधान देने के उनके प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी, डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार सहित सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
‘भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर : एक बहुआयामी प्रतिभा’ विषय पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित करते हुए डॉ. जाधव ने कहा कि डॉ. अंबेडकर के व्यक्तित्व के अनेक ऐसे पक्ष हैं, जिन पर अलग-अलग लंबी चर्चा की जा सकती है। इनमें वे एक महान अर्थशास्त्री, शिक्षाविद्, समाज सुधारक, कानूनविद्, संविधानविद्, एंथ्रोपोलॉजिस्ट, आर्थिक प्रशासक, जातिप्रथा के उन्मूलक जैसे विभिन्न रूपों में नजर आते हैं।
डॉ. जाधव के अनुसार बाबासाहेब असाधारण अर्थशास्त्री थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान ही अपनी थीसिस ‘एडमिनिस्ट्रेशन एंड फाइनेंस ऑफ ईस्ट इंडिया कंपनी’ में लिखा था कि किस प्रकार ब्रिटिश सरकार की नीतियां भारत के आम लोगों के हितों को नुकसान पहुंचा रही हैं। श्री जाधव ने बताया कि डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक-राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद 22 पुस्तकें लिखीं, जो भारतीय अर्थनीति, मुद्रानीति, वित्तीय मामलों आदि के संदर्भ में महत्वपूर्ण नीतिनिर्धारक सुझाव देती हैं।
डॉ. जाधव ने बताया कि बाबासाहेब ने एक समाज सुधारक के रूप में भी बहुत महत्वपूर्ण कार्य किए। 1923 में भारत वापस आने के बाद, अगले साल उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ का गठन किया और समाज में समता लाने के लिए अथक प्रयास किए। वह ‘समरसता’ से अधिक ‘समानता’ पर जोर देते थे।
इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने बाबासाहेब के एक पत्रकार के रूप में समाज के लिए किए गए कार्यों का स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने ‘मूकनायक’, ‘बहिष्कृत भारत’ और ‘प्रबुद्ध नायक’ जैसे प्रकाशनों के माध्यम से एक ऐसी सामाजिक चेतना जगाई, जो अपने आप में एक मिसाल है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि जिस प्रकार के समाज की कल्पना डॉ. अंबेडकर ने सौ साल पहले की थी, उसे साकार करना मीडिया का दायित्व है। अगर हम इस चुनौती को स्वीकार करेंगे, तभी ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के स्वप्न को यथार्थ में बदल सकेंगे।कार्यक्रम का संचालन आईआईएमसी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पवन कौंडल ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन अमरावती परिसर में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद निताले ने दिया।