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मुख्यमंत्री धामी इसका फायदा उठाते हुए इन दिनों अपने पूर्ववर्तियों से मुलाकात कर रहे हैं

मतदान और मतगणना के बीच तीन सप्ताह से अधिक समय, आचार संहिता लागू तो सरकार के पास करने को कुछ नहीं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इसका फायदा उठाते हुए इन दिनों अपने पूर्ववर्तियों से मुलाकात कर रहे हैं। करें भी क्यों नहीं, आखिर भाजपा के पास हैं भी तो कई पूर्व मुख्यमंत्री। धामी पिछले कुछ दिनों में त्रिवेंद्र सिंह रावत, रमेश पोखरियाल निशंक और तीरथ सिंह रावत से मिले हैं। दरअसल, सूबे में धामी 11वें मुख्यमंत्री हैं, इनमें से आठ भाजपा सरकारों में बने। भाजपा 11 और कांग्रेस 10 साल सत्ता में रही, लेकिन कांग्रेस इस मामले में भाजपा से कहीं पीछे है, उसके हिस्से तीन ही मुख्यमंत्री आए हैं। इनमें से विजय बहुगुणा अब भाजपा में हैं, जबकि नारायण दत्त तिवारी रहे नहीं। हरीश रावत फिर मुख्यमंत्री बनने की कतार में हैं। दिलचस्प यह कि राजनीति के गलियारों में धामी की मुलाकातों के भी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।

इस चुनाव में कौन, किस पर भारी पड़ रहा है, कोई अनुमान तक लगाने को तैयार नहीं। भाजपा और कांग्रेस के दावे हमेशा की तरह सत्ता प्राप्ति के ही हैं। इस सबके बीच एक चिंता गहराने लगी है कि कहीं नौबत त्रिशंकु विधानसभा की न आए। त्रिशंकु विधानसभा का मतलब जानते हैं न, जब किसी पार्टी को बहुमत न मिले और जोड़-तोड़ से सरकार बनानी पड़े। उत्तराखंड में अब तक आई चार में से दो सरकारों में ऐसा ही कुछ हुआ। 2007 में भाजपा को महज 35 सीटें मिली थीं, तब उत्तराखंड क्रांति दल व निर्दलीय के सहारे सरकार बनी। नतीजा, पांच साल में तीन मुख्यमंत्री। 2012 के चुनाव में कांग्रेस बाहरी समर्थन से सत्ता में आई, दो मुख्यमंत्री देखने को मिले। इस बार ऐसा न हो, राजनीतिक स्थिरता के लिए उम्मीद तो कर सकते हैं। सरकार कोई भी बनाए, बस यही हो कि बगैर किसी बाहरी समर्थन के बनाए।

भाजपा के आठ मुख्यमंत्रियों में से सबसे अधिक, लगभग चार साल पद पर रहने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा, मगर अब लोकसभा चुनाव लडऩे को लेकर उन्होंने जो जवाब दिया, उसने भाजपा में कई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। त्रिवेंद्र से सवाल किया गया था कि क्या वह अगला लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, जवाब मिला, नेतृत्व के आदेश का पालन करेंगे। अगला सवाल, किस सीट से, तो त्रिवेंद्र बोले, जहां आवास है, वह क्षेत्र टिहरी लोकसभा क्षेत्र में आता है। डोईवाला विधानसभा क्षेत्र, जहां से विधायक रहे, हरिद्वार लोकसभा सीट के अंतर्गत है। पैतृक आवास पौड़ी लोकसभा सीट में है। इस कारण किसी भी सीट से चुनाव लडऩे में कोई दिक्कत नहीं है। कुछ समझ आया आपको, त्रिवेंद्र की दावेदारी तीन अलग-अलग सीटों से है। इनमें से पौड़ी गढ़वाल और हरिद्वार सीट से अभी जो सांसद हैं, वे दोनों भी पूर्व मुख्यमंत्री हैं, तीरथ और निशंक।

कांग्रेस ने इस बार किसी को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसके लिए पूरी कोशिश की। तेवर दिखाए तो हाईकमान ने इतना जरूर किया कि उन्हें चुनाव अभियान की कमान सौंपते हुए फ्री हैंड दे दिया। यह कांग्रेस की मजबूरी भी थी, क्योंकि रावत के कद के आसपास कोई दूसरा नेता उनके पास था ही नहीं। कांग्रेस और रावत को भी, हर पांच साल में सत्ता बदलने के मिथक पर पूरा भरोसा है। इसीलिए सभी के चेहरे पर अभी से चमक दिख रही है। टिकट बटवारे में भी पूरी तरह रावत की चली थी, 70 में से 40 से ज्यादा टिकट इन्होंने ही बांटे। मतदान के बाद इनमें से हर कोई रावत को ही मुख्यमंत्री बना रहा है। उधर, युवा नेतृत्व के नाम पर प्रीतम खेमा भी आश्वस्त है। देखें, क्या गुल खिलेगा कांग्रेस की बगिया में 10 मार्च को।

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