नई दिल्ली। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि विदेशी मेहमानों को विपक्ष से मिलने से रोका जा रहा है। राहुल गांधी के अनुसार, यह परंपरा रही है कि विदेश से आने वाले नेताओं या डेलिगेशन की नेता प्रतिपक्ष से मुलाकात होती है, लेकिन वर्तमान सरकार इस प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रही।
राहुल गांधी ने कहा,
“अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारों में यह परंपरा थी कि विदेश से आने वाले नेता नेता प्रतिपक्ष से मिलते थे। लेकिन मोदी सरकार विदेशी मेहमानों से कहती है कि LOP से न मिलें। यह एक बार नहीं, बार-बार हो रहा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष भी भारत का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन सरकार नहीं चाहती कि विदेशी नेता विपक्ष से संवाद करें।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी राहुल के आरोपों का समर्थन किया।
उन्होंने कहा,
“यह प्रोटोकॉल है कि कोई भी विदेशी गणमान्य व्यक्ति नेता प्रतिपक्ष से मिलता है, लेकिन यह सरकार उस परंपरा को तोड़ रही है। वह किसी और आवाज़ को उठने नहीं देना चाहती।”
समाजवादी पार्टी के सांसद राजीव राय ने भी राहुल गांधी के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यदि विदेशी मेहमानों से मुलाकात रोकने जैसी कोई स्थिति है तो यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
उन्होंने कहा,
“परंपरा कायम रहनी चाहिए। देश के मुद्दों पर सभी दल एक आवाज़ में बोलते हैं। नेता प्रतिपक्ष को मिलने से रोकना ठीक नहीं है।”
राहुल गांधी के आरोपों पर भारतीय जनता पार्टी की सांसद कंगना रनौत ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने कहा,
“सरकार ऐसे फैसले देशहित में लेती है। अटल जी देशभक्त थे, लेकिन देश के लिए राहुल गांधी की भावनाएं शंकास्पद हैं। देश विरोधी गतिविधियों या अंतरराष्ट्रीय साज़िशों के संदर्भ आए हैं। अगर राहुल गांधी अपनी तुलना अटल जी से कर रहे हैं, तो उन्हें भाजपा में आ जाना चाहिए।”
बीजेपी सांसद शशांक मणि ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में महत्वपूर्ण चर्चाएं होती हैं और प्रोटोकॉल के तहत ही मुलाकातों का फैसला होता है। उन्होंने कहा,
“आवश्यकता होगी तो अन्य पार्टियों के नेता भी मुलाकात में शामिल हो सकते हैं। रूस के साथ हमारे गहरे संबंध हैं और पुतिन का स्वागत है।”
राहुल गांधी के आरोपों ने सरकार और विपक्ष के बीच एक नए राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। जहां कांग्रेस इसे लोकतांत्रिक परंपरा के उल्लंघन के रूप में देख रही है, वहीं बीजेपी इसे सरकार के विवेकाधिकार और राष्ट्रीय हित का मामला बता रही है।

