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हरीश रावत ने फिर साधे, एक तीर से कई निशाने

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत राज्य की राजनीति में सक्रिय रहेंगे, दिल्ली से उनका मन भर गया। यह हमने नहीं, स्वयं हरीश रावत ने कहा है। इंटरनेट मीडिया में रावत ने यह एलान तब किया, जब एग्जिट पोल में कर्नाटक में कांग्रेस की जीत तय बता दी गई। रावत ने लिखा, ”कांग्रेस नेतृत्व को जीत की बधाई देने दिल्ली पहुंचूंगा, राजनीतिक उद्देश्य से मेरा यह दिल्ली का अंतिम प्रवास होगा। 2017 में कांग्रेस की हार हुई, संपूर्ण नेतृत्व मेरे हाथ में था। यदि कांग्रेस का नुकसान हुआ, तो उसकी भरपाई का प्रयास भी मुझे ही करना होगा।” संदेश साफ, फिलहाल अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए रावत ने स्वघोषित रूप से पार्टी की कमान थाम ली है। ऐसा ही कुछ 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भी हुआ था। मतलब, प्रदेश अध्यक्ष, नेता विधायक दल अपना काम करते रहें, रावत ने अपना कर दिया।

 

संसदीय परंपरा जानता हूं, रहा नहीं कानून का छात्र

महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते भगत सिंह कोश्यारी खासी चर्चा में रहे। फरवरी में सेवानिवृत्ति लेकर घर लौट आए। उत्तराखंड आकर साफ कर दिया कि अब सक्रिय राजनीति का कोई इरादा नहीं। पिछले तीन महीने उन्होंने राज्य के भ्रमण और आमजन से मिलने-जुलने में ही व्यतीत किए। कोश्यारी हाल में तब फिर चर्चा में आ गए, जब सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव सरकार को लेकर राज्यपाल के रूप में उनकी भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए। जिस दिन निर्णय आया, वाराणसी होते हुए कोश्यारी दिल्ली पहुंचे ही थे। मीडिया ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर प्रतिक्रिया देने को कहा तो वह चतुराई से बच निकले। बोले, जो भी कदम उठाए, सोच-समझ कर उठाए। यही नहीं थमे कोश्यारी, सलाह भी दे डाली कि कानून के जानकार कोर्ट के निर्णय की व्याख्या-विवेचना करें। इस तर्क के साथ कि वह संसदीय और विधायी परंपराओं को जानते हैं, लेकिन कानून के छात्र कभी नहीं रहे।

 

नेताजी, पड़ोस के चुनाव नतीजे भी कुछ कहते हैं

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जोरदार जीत, पार्टी के लिए सेलीब्रेशन का मौका, मगर उत्तराखंड में पिछले नौ वर्षों से हर चुनाव में मात खाती आ रही कांग्रेस नेता सब बिसरा गए। पड़ोसी उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस की क्या दुर्गति हुई, इस ओर से नेता आंखें मूंदे रहे। नेताओं में कर्नाटक जीत की खुशी का इजहार करने की होड़ ऐसी, मानों जीत के शिल्पी वही हों। उत्तराखंड में चार-पांच महीने बाद निकाय चुनाव हैं, लेकिन मजाल क्या किसी कांग्रेसी ने उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर कोई चिंता जताई हो। कांग्रेस से ज्यादा से भाजपा पसोपेश में दिखी, योगी आदित्यनाथ ने उसके लिए लंबी लकीर जो खींच दी। पिछली बार आठ में से छह नगर निगम जीते, लेकिन दो पर कांग्रेस काबिज होने में कामयाब रही। उधर, उत्तर प्रदेश में भाजपा ने सभी 17 नगर निगमों में इस बार परचम फहरा दिया है।

 

 

मंत्रिमंडल के रिक्त पद, विपक्ष को लगे प्रलोभन मात्र

धामी मंत्रिमंडल में तीन सीट पहले से ही रिक्त थीं, एक अन्य कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के निधन से खाली हो गई। उत्तराखंड में अधिकतम 12 सदस्यीय मंत्रिमंडल हो सकता है, यानी वर्तमान में मंत्रिमंडल में कुल एक-तिहाई स्थान रिक्त पड़े हैं। भाजपा विधायकों की बेचैनी समझी जा सकती है, क्योंकि वे तो इन चार मंत्री पदों को लेकर उम्मीदें पाले हुए हैं, लेकिन विपक्ष कांग्रेस भी ऊहापोह में फंसी नजर आ रही है। माना जा रहा है कि इस वर्ष नगर निकाय चुनाव और अगले वर्ष के लोकसभा चुनाव को देखते हुए हर तरह का संतुलन साध मंत्रिमंडल में विधायकों को जगह दी जाएगी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा को इसमें भी मुख्यमंत्री की चतुराई दिख रही है। बोले, ”वैसे तो यह मुख्यमंत्री का व्यक्तिगत मामला है, उनका अधिकार है, लेकिन लगता है मंत्री पद विधायकों के लिए प्रलोभनमात्र है, जो समय-समय पर विधायकों को दिया जाता है।”

 

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