नई दिल्ली। अचानक बढ़ते हवाई किरायों, चेक-इन बैगेज पर वसूले जा रहे अतिरिक्त शुल्क और एयरलाइंस की मनमानी के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपना लिया है। सोमवार को शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार, नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) और एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (AERA) को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है कि देश में हवाई किरायों को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट नियम और एक स्वतंत्र नियामक क्यों नहीं बनाया गया है।
सोशल एक्टिविस्ट एस. लक्ष्मीनारायणन की ओर से दाखिल जनहित याचिका में दावा किया गया है कि निजी एयरलाइंस
बिना पारदर्शिता के अचानक किराये बढ़ा देती हैं,
एक्स्ट्रा चार्ज थोप देती हैं,
सेवाओं में कटौती कर देती हैं,
और शिकायतों का समाधान भी सही ढंग से नहीं करतीं।
याचिका में कहा गया है कि यह मनमानी यात्रियों के मौलिक अधिकारों—समानता, स्वतंत्र आवागमन और गरिमापूर्ण जीवन—का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि सरकार एयरलाइंस की अनियमितताओं पर केवल “दर्शक” बनी हुई है।
याचिका में उल्लेख किया गया है कि एयरलाइंस ने फ्री चेक-इन बैगेज को 25 किलो से घटाकर 15 किलो कर दिया है, यानी लगभग 40% की कमी। इससे यात्रियों पर अतिरिक्त शुल्क का बोझ बढ़ गया है।
इसके अलावा, कई रूटों पर एयरलाइंस मिनटों में डिमांड के नाम पर किराये दोगुने-तिगुने कर देती हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आज कई क्षेत्रों में हवाई यात्रा लक्जरी नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुकी है, ऐसे में मनमाना मूल्य निर्धारण जनता का नुकसान कर रहा है।
कोर्ट ने पूछा—क्या बनेगी नई रेगुलेटरी व्यवस्था?
- सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ—जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता—ने केंद्र सरकार से साफ सवाल पूछा है कि क्या
- हवाई टिकटों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट नियम बनाए जाएंगे,
- और क्या इसके लिए एक स्वतंत्र रेगुलेटर की आवश्यकता है।
मामले की अगली सुनवाई 19 दिसंबर को होगी। कोर्ट ने तब तक केंद्र, DGCA और AERA से विस्तृत जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं।
इस बीच, करोड़ों हवाई यात्रियों को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट की इस कड़ी कार्रवाई से एयरलाइंस की मनमानी पर लगाम लगेगी और उन्हें राहत मिलेगी।

