शिमला, 13 अक्तूबर:
हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष मौसम का मिज़ाज पूरी तरह बदल गया है। अक्तूबर के पहले सप्ताह में ही लाहौल-स्पीति, किन्नौर, चंबा और कुल्लू जिलों के ऊपरी इलाकों में असमय बर्फबारी दर्ज की गई है, जिससे कई क्षेत्रों में रात का तापमान शून्य से नीचे चला गया है। मौसम विभाग ने इसे पश्चिमी विक्षोभ और मानसून के बाद वातावरण में बची नमी का संयुक्त असर बताया है।
मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के वैज्ञानिक संदीप कुमार के अनुसार, अक्तूबर के पहले सप्ताह में इस तरह की सक्रियता पिछले कई वर्षों में नहीं देखी गई। अरब सागर से आई अतिरिक्त नमी ने इस बार पश्चिमी विक्षोभ को अधिक ताकतवर बना दिया, जिससे बर्फबारी कम ऊंचाई वाले इलाकों तक पहुंच गई।
इस बार हिमाचल में मानसून सीजन के दौरान सामान्य से 42% अधिक वर्षा हुई। वर्ष 1995 के बाद यह सबसे अधिक बारिश वाला साल रहा। 1995 में जहां 1029 मिमी बारिश दर्ज की गई थी, वहीं इस वर्ष 1023 मिमी बारिश दर्ज की गई। मानसून के दौरान 50 स्थानों पर बादल फटे, जबकि 98 स्थानों पर बाढ़ और 148 स्थानों पर भूस्खलन की घटनाएं सामने आईं।
जहां पहले हिमाचल में बर्फबारी नवंबर या दिसंबर में होती थी, अब यह अक्तूबर की शुरुआत में ही हो रही है। लाहौल-स्पीति जिले के बुजुर्गों का कहना है कि पहले बर्फ दिसंबर से गिरनी शुरू होती थी और मई तक जमी रहती थी, लेकिन अब बर्फबारी के समय और स्वरूप दोनों बदल गए हैं।
जिला कृषि अधिकारी डॉ. मुंशी राम ठाकुर के अनुसार, यह परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग का स्पष्ट संकेत है। उनका कहना है कि सर्दियों में गिरने वाली बर्फ ग्लेशियरों के लिए जीवनदायिनी परत का काम करती है, और समय से पहले या अनियमित बर्फबारी से खेती-बाड़ी और जल स्रोतों पर बुरा असर पड़ सकता है।
लाहौल घाटी में बर्फबारी के बीच सेब के पेड़ों पर फल लगे देखे जा रहे हैं, जो मौसम के बिगड़े संतुलन की ओर इशारा करता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह की घटनाएं आने वाले वर्षों में और भी आम हो सकती हैं।
हिमाचल प्रदेश अब पारंपरिक मौसम चक्र को पीछे छोड़ता हुआ एक नए जलवायु युग में प्रवेश कर रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि यह रुझान जारी रहा, तो खेती, पर्यटन और पारिस्थितिकी पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।