चंडीगढ़/पंचकूला।
हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन सिंह की आत्महत्या ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। चंडीगढ़ स्थित उनके आवास पर गोली मारकर की गई खुदकुशी के बाद से प्रशासनिक हलकों में हलचल मची हुई है। इस गंभीर मामले में एक 8 पन्नों का सुसाइड नोट बरामद हुआ है, जिसमें वाई पूरन सिंह ने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया है।
आईपीएस अधिकारी द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट में हरियाणा पुलिस के कई बड़े अफसरों के नाम सामने आए हैं। इनमें वर्तमान डीजीपी शत्रुजीत कपूर, पूर्व डीजीपी मनोज यादव, आईपीएस संदीप खिरवार, अमिताभ ढिल्लों, संजय कुमार, पंकज नैन, शिबास कविराज और पूर्व मुख्य सचिव टी.वी.एस.एन. प्रसाद जैसे नाम शामिल हैं।
नोट के अनुसार, उन्हें लगातार विभागीय भेदभाव, जातिगत टिप्पणियों और मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा था, जिससे तंग आकर उन्होंने यह कदम उठाया।
मामले के तूल पकड़ने के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने शनिवार को बयान देते हुए कहा—
“दोषी चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा। सरकार मामले की पूरी निष्पक्ष जांच कराएगी। न्याय देने का काम हमारी सरकार करेगी।”
सीएम ने पंचकूला में आयोजित भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में वाई पूरन सिंह के निधन पर दो मिनट का मौन रखवाया और दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने बताया कि जैसे ही जापान में मौजूद वाई पूरन सिंह की पत्नी को घटना की सूचना दी गई, सरकार ने अधिकारियों को उनके साथ भेजा और हरसंभव सहयोग सुनिश्चित किया।
घटना की गंभीरता को देखते हुए चंडीगढ़ पुलिस ने 6 सदस्यीय एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन किया है। इस टीम को सुसाइड नोट, कॉल रिकॉर्ड, सीसीटीवी फुटेज, और डिजिटल साक्ष्यों की गहनता से जांच करने का निर्देश दिया गया है।
वहीं, वाई पूरन सिंह के परिजनों और सहयोगियों का कहना है कि उन्हें लंबे समय से जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था, और यह केवल एक “दुर्घटना” नहीं बल्कि एक सोची-समझी संस्था स्तर की प्रताड़ना का नतीजा है।
घटना के बाद विपक्षी दलों ने भी सरकार पर निशाना साधा है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस नेताओं ने इस मामले में सीबीआई जांच और दोषियों की गिरफ्तारी की मांग की है। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने इसे “दलित अधिकारी के साथ संस्थागत अन्याय” बताया।
जांच के बीच सरकार ने रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारणिया का तबादला कर दिया है। माना जा रहा है कि यह कदम सुसाइड नोट में नामित अधिकारियों से जुड़े दबाव को कम करने और निष्पक्ष जांच को सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
आईपीएस वाई पूरन सिंह की आत्महत्या ने केवल एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं, बल्कि व्यवस्था में छिपे भेदभाव, मानसिक दबाव और प्रशासनिक गैर-जवाबदेही की पोल खोल दी है। मुख्यमंत्री का बयान राहत जरूर देता है, लेकिन अब सबकी निगाहें जांच की पारदर्शिता और कानूनी कार्रवाई पर टिकी हैं।
यदि यह मामला केवल जांच तक सीमित रह गया, तो यह एक और उदाहरण बनकर रह जाएगा। लेकिन यदि दोषियों को सज़ा हुई, तो यह पूरे सिस्टम में बदलाव की एक शुरुआत हो सकती है।