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अंतर-राष्ट्रीय देश

“पीओजेके पर भारत की रणनीति तेज़: ‘इतिहास और भूगोल बदलने’ की चेतावनी के पीछे क्या है तैयारी?”

नई दिल्ली।
दशहरे के दिन से लेकर अब तक भारत सरकार और सेना के शीर्ष अधिकारियों की ओर से पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) को लेकर दिए गए बयानों ने हलचल मचा दी है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी और विदेश मंत्री के बयान अब किसी संयोग नहीं बल्कि एक सुनियोजित रणनीतिक संदेश के रूप में देखे जा रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने भी हाल ही में जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को लेकर उच्चस्तरीय बैठक की है। इन घटनाक्रमों के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है कि क्या सरकार पीओजेके को लेकर कोई निर्णायक कदम उठाने की तैयारी कर रही है?

दशहरे के अवसर पर राजस्थान के जैसलमेर में सेना के जवानों को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को सख्त लहजे में चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान ने सर क्रीक क्षेत्र में कोई दुस्साहस किया, तो भारत ऐसा निर्णायक जवाब देगा जिससे “इतिहास और भूगोल दोनों बदल जाएंगे।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कराची तक पहुंचने का रास्ता सर क्रीक से भी होकर जाता है।

एक दिन बाद, भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने बयान दिया कि अब समय संयम का नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान को अपने भूगोल पर टिके रहना है, तो उसे आतंकवाद फैलाना बंद करना होगा। साथ ही उन्होंने संकेत दिए कि भविष्य में “ऑपरेशन 2.0” में भारत संयम नहीं बरतेगा।

विदेश मंत्री ने एक बार फिर दोहराया कि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) भारत का हिस्सा है, और उसे भारत में मिलाया जाना हमारा संवैधानिक दायित्व है। वहीं, गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को लेकर एक बड़ी बैठक की, जिसमें एनएसए, गृह सचिव, इंटेलिजेंस एजेंसियों और सुरक्षाबलों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर कई यूजर्स का मानना है कि यह सबकुछ किसी बड़े कदम की तैयारी का संकेत है। एक यूजर ने लिखा, “पहले रक्षा मंत्री का बयान, फिर सेना प्रमुख का, फिर विदेश मंत्री की पुष्टि और अब गृह मंत्री की सुरक्षा बैठक। यह केवल बयानबाज़ी नहीं, रणनीति का हिस्सा है।”

लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी ने बताया कि पीओजेके को सैन्य तरीके से हासिल करना आसान नहीं होगा। उन्होंने बताया कि पहाड़ी इलाकों में युद्ध के लिए आमतौर पर “अटैकर-टू-डिफेंडर” अनुपात 9:1 होता है। यानी अगर दुश्मन के 100 सैनिक हैं, तो कब्जा करने के लिए हमें 900 सैनिकों की जरूरत पड़ेगी।

उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर भारत पीओजेके में सैन्य कार्रवाई करता है, तो यह सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ नहीं होगी। इसमें चीन की भागीदारी भी संभावित है, क्योंकि चीन ने पीओके में भारी निवेश कर रखा है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), शक्सगाम घाटी, और पनबिजली परियोजनाएं – ये सभी चीन के हितों से जुड़े हैं।

1947 में ऑपरेशन गुलमर्ग के तहत पाकिस्तान ने कबायलियों की मदद से जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा कब्जा कर लिया था। वहीं, 1999 के कारगिल युद्ध में भी पाकिस्तान की मुट्ठीभर टुकड़ी ने ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया था, जिसे हटाने के लिए भारत को कई बटालियन झोंकनी पड़ी थीं।

रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि सरकार अगर कोई निर्णायक कदम उठाएगी तो वह बिना शोर-शराबे के होगा, जैसा कि 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की एयर स्ट्राइक में देखा गया। लेकिन जब रक्षा, विदेश और गृह मंत्रालय एक ही सुर में बोलते हैं, तो इसे केवल सामान्य बयानबाज़ी नहीं माना जा सकता।

भारत की ओर से लगातार दिए जा रहे सख्त बयानों को केवल राजनीतिक बयानबाजी मानना जल्दबाजी होगी। यह रणनीतिक दबाव निर्माण की प्रक्रिया का हिस्सा हो सकता है – जिसमें भारत अपने विरोधियों को यह स्पष्ट करना चाहता है कि अब पुरानी नीतियों से इतर नई नीति ‘आक्रामक बचाव’ (Offensive Defense) की हो सकती है।

भविष्य में पीओजेके को लेकर कुछ बड़ा कदम उठाया जाएगा या नहीं, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन एक बात तय है – भारत अब अपने भूभाग को लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है।

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