कई दिनों से जारी चुनाव प्रचार थमने के बाद 2024 के लोकसभा चुनावों की फिजा कुछ बदली हुई सी लग रही है। खास बात जो देखने को मिली और महसूस भी हुई वो ये कि राष्ट्रीय मुद्दों पर स्थानीय मुद्दे हावी रहे। पूरे चुनाव में कांग्रेस ने बेरोजगारी, पलायन, अंकिता भंडारी हत्याकांड, भर्ती घोटाला, अग्निवीर भर्ती योजना आदि मुद्दों को उठाया जिनमे भाजपा उलझती दिखाई दी।
अब तक के चुनावी समर में जो खास बात देखने को मिली, वह यह कि गढ़वाल की तीन सीटों पौड़ी, हरिद्वार टिहरी में कांग्रेस उम्मीद के विपरीत पहले से बेहतर स्थिति में दिख रही है। स्टार वार व संसाधन उपयोग में भाजपा के मुकाबले काफी पीछे रही कांग्रेस की हवा से भाजपा खेमे में बेचैनी है। उस सबके बावजूद कि भाजपा के हेलीकॉप्टर की घरघराहट ने मैदान से लेकर पहाड़ तक हिला कर रख दिया है।
पौड़ी में गणेश गोदियाल, हरिद्वार में पूर्व सीएम हरीश रावत और टिहरी में निर्दलीय प्रत्याशी बॉबी पंवार के आक्रामक चुनाव प्रचार से कांग्रेस 2024 में नये तेवर में दिखाई दे रही है। शुरुआती दौर में जहां इन तीनों सीट पर भाजपा का क्लीन स्वीप माना जा रहा था। हरिद्वार में वीरेंद्र को और टिहरी सीट पर पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला को मैदान में उतारना भाजपा को वाक ओवर माना जा रहा था लेकिन चुनाव प्रचार थमने के बाद स्थिति काफी बदली हुई नजर आ रही है।
हरिद्वार में मुख्य चेहरा हरीश रावत को ही माना जा रहा है। प्रियंका गांधी की चुनावी रैली के बाद कांग्रेस कार्यकर्ता उत्साह के साथ प्रचार में जुटे। इस लोकसभा की 14 सीटों में 5 पर कांग्रेस, 6 पर भाजपा, दो बसपा, एक निर्दलीय विधायक है। बसपा के एक विधायक का निधन हो चुका है। देहरादून जिले से सटी धर्मपुर, डोईवाला व ऋषिकेश में भाजपा के तीन विधायक पार्टी की मजबूती का मुख्य आधार बने हुए हैं। इन तीनों सीटों के पर्वतीय मतदाता भाजपा की रीढ़ माने जाते हैं।
इसके अलावा हरिद्वार जिले में कांग्रेस की पांच सीटों ने कांग्रेस को मुकाबले में खड़ा कर दिया है। मुस्लिम व दलित मतों का रुझान कांग्रेस की तरफ बढ़ा तो भाजपा के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। हालांकि, बसपा ने यूपी के मुस्लिम नेता को हरिद्वार से टिकट दिया है। लेकिन मायावती की फ्लॉप चुनावी रैली के बाद मुस्लिम मतों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया है।
इस बीच, मतदान से ठीक पूर्व बसपा के जिलाध्यक्ष ने कांग्रेस में शामिल होकर दलित मतदाताओं को भी सन्देश देने की कोशिश की है। इस सीट पर मुस्लिम,दलित,सैनी व पर्वतीय मतदाता निर्णायक भूमिका में है। पीएम मोदी, सीएम योगी व धामी की रैलियों के बाद ऐन मौके पर हरिद्वार के अखाड़े उतरे पूर्व सीएम समर्थक दोगुने उत्साह में हैं। हालांकि,इससे पूर्व नड्डा के हरिद्वार कार्यक्रम में कई सीटें खाली रहने पर भाजपा के अंदर विकट स्थिति पैदा हो गयी थी।
लगभग 20 लाख वोटरों वाली इस सीट पर भाजपा ने पूर्व सीएम निशंक का टिकट काटकर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत को चुनाव मैदान में उतारा। इस सीट पर भाजपा की अंदरूनी जंग भी चर्चा में है। हरिद्वार से जुड़े कुछ भाजपा के अहम नेता 2022 का विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। इन नेताओं का त्रिवेंद्र रावत से रिश्ते बहुत मधुर नहीं बताए जा रहे।
नतीजतन,चुनाव में इनकी उदासीनता की कीमत भाजपा को भारी पड़ सकती है। पार्टी को इस सीट पर भितरघात का भी अंदेशा है। मंत्री, विधायक व सांसद की परफॉर्मेंस का आंकलन भी मतदाताओं के रुख पर विशेष असर डालेगा। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा प्रत्याशी का व्यवहार व मुख्यमंत्री रहते हुए इनके कार्यकाल में भर्ती घोटाला भी लोगों की जुबान पर है। बताया जाता है कि ब्राह्मण बहुल क्षेत्रों में विरोधियों ने पूर्व शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा से दुर्व्यहार का मामला भी उठाया । यदि ये मामला तूल पकड़ा तो भाजपा को नुकसान हो सकता है। चूंकि हरिद्वार संसदीय सीट पर 2.5 लाख से अधिक ब्राह्मण मतदाता हैं। इन मतदाताओं के बीच हरीश रावत की भी गहरी पैठ है।