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गूगल डूडल पर सजी इडली, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इडली-सांभर असल में दक्षिण भारतीय व्यंजन नहीं हैं? पढ़ें इनकी दिलचस्प कहानी!

नई दिल्ली, 11 अक्टूबर 2025।
आज गूगल ने अपने होमपेज को इडली के खूबसूरत डूडल से सजाया, जिसे देखकर हर भारतीय के मुंह में पानी आ गया। इडली, जिसे आम तौर पर दक्षिण भारतीय व्यंजन माना जाता है, देश ही नहीं, दुनियाभर में साउथ इंडियन ब्रेकफास्ट के रूप में प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इडली और सांभर, जिनका नाम एक साथ लिया जाता है, दरअसल मूलतः दक्षिण भारत के व्यंजन हैं ही नहीं?

जी हाँ, इतिहास और शोध यह दर्शाते हैं कि इडली की जड़ें भारत से बाहर, और सांभर की उत्पत्ति मराठा शासन में हुई थी

इतिहासकारों और पाक विशेषज्ञों के अनुसार, इडली जैसी डिश 7वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान इंडोनेशिया में प्रचलित थी, जहां इसे ‘केडली’ या ‘केदारी’ कहा जाता था। उस समय इंडोनेशिया में हिंदू राजाओं का शासन था, और जब वे भारत आते थे, तो अपने रसोइयों के साथ यह व्यंजन भी लाते थे। धीरे-धीरे इसने भारत में रूप बदला और इडली के नाम से लोकप्रिय हो गई।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, अरब व्यापारी, जो दक्षिण भारत में व्यापार के लिए आते थे, वे अपने साथ चावल के गोले जैसा व्यंजन लाए थे, जिसे उन्होंने स्थानीय सामग्री से बनाना सिखाया। इस प्रक्रिया में उड़द दाल और चावल का इस्तेमाल हुआ और धीरे-धीरे यह इडली का रूप लेने लगा।

भारत में इसका सबसे पुराना उल्लेख 10वीं सदी के कन्नड़ ग्रंथों में मिलता है, जिसमें इसे एक किण्वित (fermented) पकवान के रूप में बताया गया है।

इडली के साथ जुड़ी हुई डिश सांभर भी दिलचस्प इतिहास रखती है। लोकप्रिय धारणा के विपरीत, इसका जन्म मराठा साम्राज्य के दौरान 17वीं सदी में हुआ था।

कहानी के अनुसार, मराठा सम्राट शिवाजी के पुत्र संभाजी जब तंजावुर आए (जो उस समय मराठा अधीन था), तो रसोइये ने उनके लिए एक विशेष व्यंजन तैयार किया। कोकम की अनुपलब्धता के चलते रसोइए ने उसमें इमली का इस्तेमाल किया और दाल के रूप में तूर दाल ली। यह स्वाद संभाजी को इतना पसंद आया कि इस व्यंजन का नाम ही “सांभर” रख दिया गया — संभाजी के नाम पर।

लेकिन इससे भी पहले, 12वीं सदी के एक संस्कृत ग्रंथ ‘विक्रमांक अभिदेय’ में भी सांभर जैसे मसालों का उल्लेख मिलता है, जिसमें हींग, हल्दी, काली मिर्च और धनिया को दाल और सब्ज़ियों में डालने की विधि बताई गई है। इसे चालुक्य राजा सोमेश्वर तृतीय ने लिखा था।

ऐसा कहना पूरी तरह से सही नहीं होगा। हालांकि इन व्यंजनों की उत्पत्ति कहीं और हुई हो, परंतु इनका विकास और परंपरागत रूप में स्थायी स्थान दक्षिण भारत में ही बना। दक्षिण भारतीय संस्कृति ने इन्हें अपनाया, संवारा और पूरे भारत (यहाँ तक कि विदेशों) में पहचान दी।

आज इडली-सांभर सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि भारतीय व्यंजनों की पहचान बन चुके हैं — साधारण, पौष्टिक और स्वादिष्ट।

गूगल का आज का डूडल न सिर्फ एक स्वादिष्ट व्यंजन को सम्मान देता है, बल्कि हमें यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि हमारे खाने की थाली में मौजूद व्यंजन कितने समृद्ध और बहुसांस्कृतिक इतिहास से जुड़े हुए हैं।

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