उत्तराखंड में इस बार मॉनसून ने तबाही की नई कहानी लिखी है। जगह-जगह बादल फटने, भूस्खलन और फ्लैश फ्लड की घटनाओं ने राज्य को गहरे जख्म दिए हैं, जिनकी भरपाई आने वाले कई वर्षों तक मुश्किल नजर आ रही है। लेकिन अब जब आपदाओं की समीक्षा हो रही है, तो यह सामने आ रहा है कि इन आपदाओं के पीछे केवल प्राकृतिक कारण ही नहीं, बल्कि मानवजनित लापरवाही और अनियमित निर्माण कार्य भी बड़ी वजह बनकर उभरे हैं।
15 सितंबर की रात और 16 सितंबर की सुबह देहरादून के मालदेवता, सहस्त्रधारा, शहंशाही आश्रम, राजपुर रोड और मसूरी रोड क्षेत्र में हुई भारी बारिश ने कई इलाकों में तबाही मचा दी। जिला प्रशासन ने जब मौके का मुआयना किया तो पाया कि सहस्त्रधारा क्षेत्र में एक रिजॉर्ट ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह को मोड़ते हुए निर्माण किया था। इसी वजह से बाढ़ के दौरान पानी का बहाव बदल गया और भारी नुकसान हुआ। इस गैरकानूनी निर्माण पर जिलाधिकारी ने रिजॉर्ट स्वामी पर 7 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है।
ठीक इसी तरह का एक और मामला टिहरी और देहरादून जिलों की सीमा पर स्थित सरखेत गांव के पास सामने आया है। 19 अगस्त 2022 को यहां भयंकर आपदा आई थी, जिसमें कई लोगों की जान गई और गांव बर्बाद हो गया। अब आश्चर्यजनक रूप से उसी क्षेत्र में, बांदल नदी के किनारे एक नया आलीशान रिजॉर्ट निर्माणाधीन है। नदी के बहाव को कृत्रिम रूप से मोड़कर रिजॉर्ट का निर्माण किया जा रहा है। जियोलॉजिस्ट्स का कहना है कि यह इलाका भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील है और इस तरह का निर्माण भविष्य में बड़ा खतरा बन सकता है।
यह मामला और भी गंभीर तब बनता है जब यह पता चलता है कि यह निर्माण दोनों जिलों की सीमा पर हो रहा है, और अभी तक ना तो टिहरी गढ़वाल और ना ही देहरादून प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई की गई है।यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या इस निर्माण के लिए सभी आवश्यक पर्यावरणीय और कानूनी अनुमतियाँ ली गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी क्षेत्र में अतिक्रमण कर निर्माण करना पूरी तरह अवैध है और इससे भविष्य में जान-माल की बड़ी हानि हो सकती है।
उत्तरकाशी के धराली, मालदेवता और सरखेत जैसी आपदाओं में वैज्ञानिकों ने पहले ही नदी किनारे के अतिक्रमण और अनियोजित निर्माण को बड़ा कारण बताया था। इसके बावजूद ऐसी घटनाएं लगातार दोहराई जा रही हैं, जिससे यह साफ है कि प्रशासनिक उदासीनता और विकास के नाम पर लापरवाही भविष्य की और बड़ी आपदाओं को न्योता दे रही है।
उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति बेहद संवेदनशील है और यहां विकास की हर गतिविधि को प्राकृतिक संतुलन के दायरे में रहकर संचालित किया जाना चाहिए। लेकिन लगातार नियमों की अनदेखी, नदी प्रवाह से छेड़छाड़ और प्रशासनिक चुप्पी आने वाले समय में पूरे राज्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।