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आरबीआई ने रेपो रेट में नहीं किया बदलाव, 5.50% पर स्थिर; जीएसटी सुधार से महंगाई पर राहत की उम्मीद

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने और महंगाई को नियंत्रित रखने की रणनीति के तहत रेपो रेट को 5.50 प्रतिशत पर यथावत रखने का फैसला किया है। यह घोषणा आज गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय बैठक के बाद की।

तीन दिन चली इस बैठक में देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति, वैश्विक आर्थिक दबाव और भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया। गवर्नर ने स्पष्ट किया कि नीतिगत रुख को ‘तटस्थ’ बनाए रखा गया है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर भविष्य में किसी भी दिशा में कदम उठाया जा सके।

रेपो रेट को 5.50% पर स्थिर रखने का यह फैसला उन अनुमानों के अनुरूप है, जो अधिकांश बाजार विशेषज्ञों ने पहले ही जताए थे। ब्याज दरों में कोई बदलाव न होने से मौजूदा कर्ज की किस्तों पर असर नहीं पड़ेगा, लेकिन नए कर्ज लेने वालों को भी अतिरिक्त राहत नहीं मिलेगी।

आरबीआई गवर्नर ने कहा कि जीएसटी ढांचे में सुधार से मूल्य स्थिरता बनाए रखने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि कर ढांचे में पारदर्शिता और सरलता से उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती हो सकती हैं, जिससे महंगाई पर अंकुश लगेगा।

गवर्नर मल्होत्रा ने चिंता जताई कि आयात-निर्यात पर बढ़े हुए टैरिफ (शुल्क) से निर्यात की रफ्तार पर असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए टैरिफ नीति पर पुनर्विचार जरूरी हो सकता है।

🔹 रेपो रेट में पहले की गई कटौतियां

  • फरवरी 2025: 25 आधार अंकों की कटौती
  • अप्रैल 2025: 25 आधार अंकों की कटौती
  • जून 2025: 50 आधार अंकों की बड़ी कटौती

इन कटौतियों के चलते इस वर्ष कुल मिलाकर 1.00% की कटौती पहले ही की जा चुकी है।

🔹 आम आदमी पर असर

  • होम लोन और अन्य कर्जों पर किस्तों में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी।
  • महंगाई पर थोड़ा नियंत्रण आने की उम्मीद है।
  • व्यापारी वर्ग को जीएसटी सरलीकरण से लाभ हो सकता है।

🔹 बैठक का विवरण

  • शुरुआत: 29 सितंबर 2025 (सोमवार)
  • समाप्ति: 1 अक्टूबर 2025 (बुधवार)
  • घोषणा: गवर्नर संजय मल्होत्रा द्वारा

आरबीआई का यह निर्णय एक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहां आर्थिक विकास और महंगाई दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की गई है। विशेषज्ञों की नजर अब अगली मौद्रिक नीति बैठक और वैश्विक आर्थिक संकेतकों पर टिकी है।

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