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नेपाल में लोकतंत्र की पुकार: सोशल मीडिया बैन के खिलाफ जनरेशन-Z का विद्रोह, ओली ने छोड़ी कुर्सी

नेपाल इन दिनों एक नए राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ शुरू हुआ युवा आंदोलन देखते ही देखते सत्ता परिवर्तन का कारण बन गया। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारी जनदबाव के चलते इस्तीफा दे दिया है और देश में आपात स्थिति जैसे हालात बने हुए हैं।

नेपाल में बेरोजगारी, बढ़ते भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को लेकर युवाओं में पहले से ही नाराज़गी थी। पिछले हफ्ते ओली सरकार द्वारा फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद यह असंतोष सड़कों पर फूट पड़ा।

प्रदर्शन की शुरुआत राजधानी काठमांडू से हुई, लेकिन जल्द ही यह पूरे देश में फैल गई। प्रदर्शनकारियों में अधिकांश संख्या 30 साल से कम उम्र के युवाओं की है, जिन्होंने “Hami Nepal” जैसे नारे लगाते हुए व्यवस्था परिवर्तन की मांग की।

सोमवार को स्थिति तब बिगड़ी जब सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग किया, जिसमें दर्जनों लोग घायल हुए और कम से कम 19 लोगों की जान गई। इसके बाद गुस्साई भीड़ ने संसद, सिंह दरबार (सरकारी सचिवालय), और अन्य सरकारी इमारतों पर हमला किया। कई स्थानों पर आगजनी और लूटपाट की घटनाएं भी हुईं। स्थिति काबू में लाने के लिए सेना को तैनात किया गया है और कई शहरों में कर्फ्यू लागू है। सेना अब राजधानी में फ्लैग मार्च कर रही है और संवेदनशील इलाकों की निगरानी कर रही है।

केपी शर्मा ओली, जो जुलाई 2024 में चौथी बार प्रधानमंत्री बने थे, अपनी सख्त प्रशासनिक शैली और आलोचना को कुचलने की नीति के लिए जाने जाते थे। उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों को भी अपने अधीन कर लिया था, और विरोधियों पर कार्रवाई के लिए इनका उपयोग किया, लेकिन सोशल मीडिया पर बैन और इसके बाद हुई हिंसक कार्रवाई ने उनके खिलाफ माहौल ऐसा बना दिया कि उन्हें पद छोड़ना पड़ा। सोमवार रात हुई कैबिनेट बैठक के बाद उन्होंने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप दिया।

प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें हैं:

सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से प्रतिबंध हटाना

नया संविधान लागू करना

प्रतिनिधि सभा को भंग करना

भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं और अफसरों की गिरफ्तारी

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह सिर्फ एक आंदोलन नहीं, बल्कि “नई राजनीतिक संस्कृति” की शुरुआत है। आंदोलन का नेतृत्व कोई राजनीतिक दल नहीं, बल्कि आम छात्र, युवा और सोशल एक्टिविस्ट कर रहे हैं।

नेपाल के इस हालात पर भारत सहित कई देशों की नजर बनी हुई है। भारत ने नेपाल यात्रा कर रहे अपने नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी है और काठमांडू के लिए उड़ानें स्थगित कर दी गई हैं। भारतीय पर्यटकों के नेपाल में फंसे होने की भी खबरें हैं। संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने नेपाल में शांति और लोकतंत्र की बहाली की अपील की है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया के समर्थन में नहीं, बल्कि युवाओं की उस छटपटाहट का प्रतीक है जो एक जवाबदेह और पारदर्शी शासन व्यवस्था की मांग कर रही है। क्या नेपाल इस विद्रोह से एक नया लोकतांत्रिक अध्याय शुरू करेगा या फिर एक और राजनीतिक अस्थिरता की ओर बढ़ेगा — यह आने वाले दिनों में साफ होगा।

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