उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में दिवाकर भट्ट का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। युवावस्था से ही वह आंदोलन के लिए समर्पित रहे और पहाड़ की अस्मिता, पहचान और अधिकारों के लिए सतत संघर्ष करते रहे।
आंदोलन की शुरुआत और प्रारंभिक सक्रियता
दिवाकर भट्ट श्रीनगर से आईटीआई करने के बाद बीएचईएल हरिद्वार में नियुक्त हुए, जहां उन्होंने एक सक्रिय कर्मचारी नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। इसी दौरान 1970 में उन्होंने पर्वतीय वासियों को संगठित कर ‘तरुण हिमालय’ संस्था की स्थापना की, जिसने आगे चलकर कई आंदोलनों को दिशा दी।
वर्ष 1971 में चले गढ़वाल विश्वविद्यालय आंदोलन में भट्ट सक्रिय रूप से सड़कों पर उतरे। इसके बाद 1988 में वन अधिनियम के कारण रुके विकास कार्यों को लेकर आंदोलन किया, जिसमें उनकी गिरफ्तारी भी हुई।
बदरीनाथ से दिल्ली पदयात्रा और उक्रांद की स्थापना में भूमिका
वर्ष 1978 में उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर दिल्ली में हुई रैली के लिए वे उन चुनिंदा युवाओं में शामिल थे, जिन्होंने बदरीनाथ से दिल्ली तक ऐतिहासिक पदयात्रा की।
1979 में गठित उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के वे संस्थापक सदस्यों में से एक रहे।
उनके जुझारू तेवरों और नेतृत्व क्षमता को देखते हुए राज्य आंदोलन के दौरान गांधीवादी नेता इंद्रमणि बडोनी ने 1993 में उन्हें ‘फील्ड मार्शल’ की उपाधि दी।
राजनीतिक सफर और भूकानून में योगदान
2007 में दिवाकर भट्ट देवप्रयाग विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। तत्पश्चात उन्होंने भाजपा सरकार को समर्थन दिया और राजस्व मंत्री बने।
मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी के मुख्यमंत्रित्वकाल में बने सख्त भूकानून (फार्म लैंड कानून) के निर्माण में भट्ट की मुख्य भूमिका मानी जाती है।
वे तीन बार कीर्तिनगर के ब्लॉक प्रमुख भी रहे।
राज्य आंदोलन का महत्वपूर्ण अध्याय
1994 में जब राज्य आंदोलन पूरे उफान पर था, दिवाकर भट्ट इसकी प्रमुख आवाजों में शामिल थे।
उन्होंने कई बार जनता के मुद्दों पर संघर्ष किया, जिनमें—
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नवंबर 1995 को श्रीनगर के श्रीयंत्र टापू पर आमरण अनशन,
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दिसंबर 1995 में टिहरी के खैट पर्वत पर आमरण अनशन शामिल हैं।
दोनों अनशन राज्य आंदोलन के निर्णायक मोड़ों में गिने जाते हैं।

