उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड क्रिकेट प्रीमियर लीग (UPL) का ठेका बिना सार्वजनिक टेंडर प्रक्रिया अपनाए एक ही व्यक्ति को देने के मामले में बीसीसीआई, उत्तराखंड क्रिकेट बोर्ड और उसके पदाधिकारियों को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब तलब किया है।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ के समक्ष बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष सुरेंद्र भंडारी की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि 2006 में गठित उत्तराखंड क्रिकेट बोर्ड को 2019 में बीसीसीआई से मान्यता मिली और तब से अब तक बोर्ड को 22 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि मिल चुकी है। इसके बावजूद खिलाड़ियों की सुविधाओं और खेल विकास पर इसका उपयोग नहीं हुआ। खिलाड़ियों को पौष्टिक आहार के नाम पर सिर्फ केले दिए गए।
भंडारी ने कहा कि नियम के मुताबिक एक व्यक्ति केवल एक ही टेंडर डाल सकता है, लेकिन UPL का ठेका मनमाने ढंग से एक ही कंपनी को दे दिया गया। इससे बोर्ड को लगभग दो करोड़ रुपये की आय होनी चाहिए थी, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया। मैचों के दौरान फ्रेंचाइजी कंपनियों द्वारा दिए गए विज्ञापन शुल्क को भी दरकिनार कर दिया गया। कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए विस्तृत जांच की आवश्यकता जताई है।