



मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आदेशों का पालन उनके मंत्री ही नहीं कर रहे। मुख्यमंत्री ने मंत्रियों को सप्ताह में दो दिन बुधवार और बृहस्पतिवार को विधानसभा स्थित कार्यालयों में बैठने के आदेश दिए थे। आलम ये है कि बमुश्किल दो या तीन मंत्री ही विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। बृहस्पतिवार को स्थिति यह थी कि दोपहर डेढ़ बजे तक विधानसभा में सन्नाटा पसरा रहा। एक भी मंत्री विधानसभा नहीं पहुंचा। दूरदराज से अपने काम लेकर लोग तो पहुंचे थे, लेकिन मंत्रियों के कार्यालयों के दरवाजे बंद पड़े थे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र, सहकारिता मंत्री धन सिंह और शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे। शेष कोई भी मंत्री मौजूद नहीं था।
हालांकि कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक और धन सिंह रावत दोपहर बाद विधानसभा पहुंचे। बुधवार को भी कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक, राज्यमंत्री रेखा आर्य और धनसिंह रावत बैठे थे। लेकिन हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सतपाल महाराज और सुबोध उनियाल दोनों दिन मौजूद नहीं रहे। इनमें से कुछ मंत्री तो मुख्यमंत्री के आदेश के बाद एक बार भी विधानसभा नहीं बैठे हैं। मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्रों को ही नहीं छोड़ रहे। विधानसभाओं से राजधानी दून आ भी जाते हैं तो सरकारी बंगलों से ही कामकाज निपटाते हैं। वहीं, मुख्यमंत्री निर्धारित दिनों में विधानसभा पहुंच रहे हैं। जनता से भी नियमित मिल रहे हैं।
मंत्रियों की मुख्यमंत्री के आदेशों को नहीं मानने और विधानसभा स्थित कार्यालयों से बनाई दूरी की वजहें साफ नहीं हैं। मुख्यमंत्री ने जनता से सीधे जुड़ने के लिए विधानसभा में दो दिन अनिवार्य रूप से बैठने का आदेश दिया था। उन्होंने आम जनता को यह संदेश दिया था कि बुधवार और बृहस्पतिवार को पूरा मंत्रिमंडल विधानसभा में मिल जाएगा।इससे दूर दराज के क्षेत्रों से काम के लिए आने वाले लोगों को सहूलियत होगी। लोग आदेश के बाद विधानसभा पहुंच रहे हैं, लेकिन अधिकांश मंत्री गायब होने से उनके हाथ निराशा ही लग रही है।