



मंगलवार को सदन के पटल पर रखे गए भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की वर्ष 2017-18 तक की रिपोर्ट बता रही है कि प्रदेश अपने वित्तीय संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। आर्थिक रूप से राज्य समृद्ध हो रहा है लेकिन इसका फायदा लोगों को समग्र रूप से नहीं मिल पा रहा है। कर्ज के ब्याज को भुगतने के लिए तक कर्ज लेना पड़ रहा है। कर्ज का करीब एक तिहाई का उपयोग ही सरकार विकास योजनाओं के लिए कर पा रही है।वेतन, पेंशन और ब्याज पर खर्च बढ़ रहा है और सरकार के पास विकास कार्य के लिए धन कम हो रहा है। वर्ष 2013 से लेकर 2018 तक के राज्य की आर्थिक स्थिति की लेखा परीक्षा में कैग ने पाया कि वर्ष 2013 के राजस्व सरप्लस के स्टेटस को प्रदेश सरकार बाद के वर्षो के लिए बरकरार नहीं रख पाई।
गत वर्ष में उत्तराखण्ड की आर्थिक स्थिति बड़ी
प्रारंभिक घाटा (राजकोषीय घाटे में से ब्याज भुगतान हटाने पर प्राप्त राशि) भी लगातार बढ़ा और इसका मतलब यह है कि सरकार को उधार ली गई राशि के लिए भी उधार लेना पड़ रहा है। इन सब के बीच नवजात मृत्यु दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक पाई गई। इसी आधार पर कैग ने स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिक निवेश का सुझाव भी राज्य सरकार को दिया।
कैग ने पाया कि बीते कुछ समय में राज्य का तेजी से आर्थिक विकास हुआ। 2008-09 से लेकर 2017-18 तक जीडीपी की प्रचलित दरों पर मिश्रित आर्थिक विकास दर (सीएजीआर) 16.30 प्रतिशत तथा प्रति व्यक्ति आय में यह विकास दर 14.70 प्रतिशत पाई गई।
यह अन्य विशेष श्रेणी के राज्यों से अधिक थी। इसी तरह प्रति व्यक्ति आय के मामले में उत्तराखंड की विकास दर राष्ट्रीय औसत से अधिक पाई गई। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोग उत्तराखंड में अन्य राज्यों की तुलना में कम पाए गए।