जिस रामलीला में वे दशरथ बनते हैं, उसमें ‘राजतिलक’ ‘राम’ का ही होता आया है। रामलीलाएं राम के राजतिलक के लिए जानी जाती हैं। लेकिन युवाओं के प्रतीक ‘राम’ की भाजपा में इस बार ‘दशरथ’ का ‘राजतिलक’ हुआ है।
ये मोदी और शाह के फॉर्मूले से कुछ जुदा प्रयोग माना जा रहा है। केंद्र और राज्यों की सत्ता पर काबिज होने के लिए उनका अब तक एक ही फार्मूला रहा है, अनुभवी युवा चेहरा। इसी फॉर्मूले के दम पर पार्टी युवा वोट बैंक को साधने में कामयाब रही। प्रदेश में करीब 30 फीसदी युवा मतदाता हैं।
इस वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश संगठन मंत्री के पद पर युवा चेहरे पर भरोसा किया। मगर भाजपा के रथ की कमान ‘दशरथ’ के हाथों में सौंपकर पार्टी ने कौन सी सियासी चाल चली है, ये प्रश्न पार्टी के तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को मथता रहा है।
मगर इस प्रश्न से जुदा भाजपा के रथ के सारथी बंशीधर की निगाहें 2022 के चुनावी ‘महाभारत’ पर टिकी हैं। कमान संभालते ही उनकी जुबां से जो सबसे पहला शब्द निकला तो वह 2022 की चुनावी महाभारत का था।
हंसमुख स्वभाव के बंशीधर अनुभवी और चतुर नेताओं में गिने जाते हैं। ये उनकी राजनीतिक उपलब्धियों से बयान हो जाता है। 70 के दशक में जनसंघ से जुड़ने और किसानों के लिए संघर्ष करने के साथ ही वे पंचायत और सहकारी समितियों की चुनावी सियासत के खिलाड़ी रहे। वे पार्टी के उन चुनिंदा नेताओं में से हैं जो संघ और संगठन की विचारधारा की घुट्टी पीकर जमीन से सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे हैं।
1991 में पहली बार नैनीताल विधानसभा से विधायक चुने जाने के बाद उन्होंने जीत का जो सिलसिला शुरू किया तो 1993 व 1996 तक जारी रहा। 2002 में इंदिरा से चुनाव हारने के बाद उन्होंने फिर हार का मुंह नहीं देखा। 2007 में उन्होंने खांटी सियासतदां डॉ.इंदिरा हृदयेश को हराकर हिसाब चुकता किया।