लॉकडाउन के ख़त्म होते ही सीवर और उद्योगों की गंदगी से हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा का पानी पहले से ज्यादा दूषित हो गया है। लॉकडाउन के दौरान गंगा का पानी पीने लायक हो चुका था। पीसीबी के मुख्य पर्यावरण अधिकारी एसएस पॉल ने बताया कि, फिकल कालीफार्म पानी की गंदगी का सबसे बड़ा कारक होता है। इसकी मात्रा जितनी बढ़ती जाती है पानी उतना दूषित होता जाता है। इसका मानक अधिकतम 50 एमपीएम प्रति सौ एमएल है। ये मुख्यत: सीवरेज और कारखानों की गंदगी से बढ़ता है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जून जुलाई की मानिटरिंग में यह तथ्य सामने आए हैं। लॉकडाउन के दौरान अप्रैल में जहां हरकी पैड़ी पर फिकल कालीफार्म की मात्रा 26 एमपीए प्रति सौ एमएल थी, वहीं ये जून जुलाई में 60 तक पहुंच गई। यह तय मानक 50 एमपीएम प्रति सौ एमएल से ज्यादा है। मार्च में लॉकडाउन से पहले भी ये मात्रा 34 एमपीएम प्रति सौ एमएल के स्तर पर थी। ऋषिकेश-लक्ष्मणझूला में लॉकडाउन के दौरान फिकल कॉलीफार्म की मात्रा 12 एमपीएम प्रति सौ एमल थी, जो जून जुलाई में 26 तक पहुंच गई। जबकि लॉकडाउन से पहले ये 26 ही थी। पीसीबी के मुख्य पर्यावरण अधिकारी एसएस पाल के अनुसार लॉकडाउन खत्म होने के बाद औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने और बरसात में सभी नालों का पानी आने से गंगा में फिकल कालीफार्म की मात्रा बढ़ गई है।