गंगोत्री से लेकर ऋषिकेश तक गंगा जल की निर्मलता और स्वच्छता के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। गंगोत्री से लेकर ऋषिकेश तक भागीरथी (गंगा) का जल पीने के उपयुक्त पाया गया। यह शोध अध्ययन में उत्तरकाशी निवासी शिक्षक डॉ. शंभू नौटियाल ने किया। इसके लिए उन्होंने उत्तरकाशी में अपने घर पर लैब स्थापित की है।कोरोना महामारी से वैश्विक स्तर पर जहां चारों ओर नुकसान पहुंचा है, वहीं प्रकृति, पर्यावरण व जीवनदायनी नदियों ने राहत की सांस ली है। खासकर गंगा की बात करें तो गंगा जल को जीवन एवं संस्कृति आधार माना गया है। आस्था को लेकर गंगा जल का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। गंगा के मायका कहने जाने वाले उत्तरकाशी-गंगोत्री क्षेत्र में गंगा की अविरलता और निर्मलता आस्था को और अधिक बढ़ा देती है।
वर्ष 2015 में डॉ. शंभू नौटियाल की पीएचडी भी भागीरथी (गंगा) के अध्ययन पर ही है। डा. शंभू नौटियाल के अनुसार गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक गंगा पूरी तरह से स्वच्छ और निर्मल है। इसका कारण वे कोविड कर्फ्यू और गत वर्ष के लॉकडाउन को भी मानते हैं।कोरोना महामारी से वैश्विक स्तर पर जहां चारों ओर नुकसान पहुंचा है, वहीं प्रकृति, पर्यावरण व जीवनदायनी नदियों ने राहत की सांस ली है। खासकर गंगा की बात करें तो गंगा जल को जीवन एवं संस्कृति आधार माना गया है। आस्था को लेकर गंगा जल का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। गंगा के मायका कहने जाने वाले उत्तरकाशी-गंगोत्री क्षेत्र में गंगा की अविरलता और निर्मलता आस्था को और अधिक बढ़ा देती है।
गंगा जल की गुणवत्ता को लेकर शोध कर रहे डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल कहते हैं के उनके शोध अध्ययन में यह बात निकल कर आयी है कि कोविड काल के दौरान गंगा जल के गुणवत्ता में काफी सुधार देखने को मिला है। जबकि पिछले वर्षों में कुछ संस्थाओं ने उत्तरकाशी में भी गंगा जल को पीने योग्य नहीं पाया था।
डॉ. शंभू नौटियाल कहते हैं कि उन्होंने कोविड काल में गंगोत्री, उत्तरकाशी तथा ऋषिकेश से गंगा जल के नमूने संग्रह कर उसके परीक्षण किया। सभी संग्रह नमूने स्वीकार्य सीमा और अनुमेय सीमा के अधीन पीने व नहाने योग्य पाए गए। हालांकि, गंगोत्री व उत्तरकाशी से संग्रह जल की गुणवत्ता तुलनात्मक रूप से ऋषिकेश से बेहतर मिले है। परिणाम बताते हैं कि इस बार पर्यटकों के कम आवाजाही से गंगा जल के गुणवत्ता में सुधार देखने को मिला है।