



प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रदेश सरकार को बड़ी राहत मिली है। न्यायालय में सरकार की ओर से यह तर्क रखा गया था संविधान के अनुच्छेद 16 (4-ए) के तहत प्रदेश सरकार आरक्षण देने अथवा नहीं देने को लेकर स्वतंत्र है। कोई भी न्यायालय उसे प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आदेश नहीं दे सकता। ज्ञानचंद बनाम राज्य सरकार व अन्य के मामले में एक अप्रैल 2019 को उच्च न्यायालय ने प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था समाप्त करने के प्रदेश सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया। प्रदेश सरकार ने ये आदेश पांच सिंतबर 2012 को जारी किया था। ये आदेश उसने 10 जुलाई 2012 को विनोद नौटियाल मामले में उच्च न्यायालय के पारित आदेश पर दिया था।
आदेश के खिलाफ प्रदेश सरकार ने पहले उच्च न्यायालय में एसएलपी दाखिल की और उसके बाद इसे वापस लेकर सर्वोच्च न्यायालय में चली गई। सर्वोच्च अदालत में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पैरवी की। सुप्रीम कोर्ट में प्रदेश सरकार की एडवोकेट ऑन रिकार्ड वंशजा शुक्ला और अपर सचिव कार्मिक सुमन सिंह वल्दिया ने उन्हें केस से जुड़े आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराए।
एडवोकेट ऑन रिकार्ड शुक्ला कहती हैं, ‘सरकार ने न्यायालय में कहा कि संविधान के तहत आरक्षण देने न देने का अधिकार प्रदेश सरकार को है। इस बारे में न्यायालय राज्य सरकार को आदेश नहीं दे सकता।’ आधिकारिक सूत्रों की मानें तो न्यायालय में प्रदेश सरकार के स्टैंड से साफ हो गया कि वह प्रमोशन में आरक्षण देने के पक्ष में नहीं है। अदालत का फैसला आने के बाद उसे बहुत बड़ी राहत मिली है। अब यह माना जा रहा है कि सरकार प्रमोशन की राह खोल देगी।