विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले भाजपा ने विपक्ष के हाथ से एक और बड़ा मुद्दा छीन लिया। पिछले दो वर्षों से जिस चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को लेकर राजनीति चल रही थी, उस बोर्ड को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भंग करने का बड़ा कदम उठा लिया। विपक्ष हालांकि इस विषय को लंबा खींचने के मूड में दिख रहा है, लेकिन सरकार ने समय रहते पंडा-पुरोहित समाज की नाराजगी का कारण बने अधिनियम को ही वापस लेने का निर्णय कर विपक्ष के हमलों की धार को कुंद कर दिया।पिछले दो सप्ताह के दौरान यह तीसरा अवसर रहा, जब आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए उत्तराखंड में भाजपा को बड़ी राहत मिली। पहले केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि बिलों को वापस लिए जाने से भाजपा के समक्ष किसानों की नाराजगी से निबटने की जो चुनौती थी, वह खत्म हुई। उत्तराखंड में लगभग 20 सीटों पर यह मुद्दा खासा अहमियत रखता है। हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर जिलों के अलावा देहरादून जिले की कई सीटों पर किसान एक बड़े वोट बैंक की भूमिका में रहते आए हैं। भाजपा लगातार कोशिश कर रही थी कि किसी भी तरह किसानों को कृषि बिलों के फायदों के बारे में पूरी जानकारी दी जाए, मगर फिर भी पार्टी इस ओर से सशंकित थी। इसके बाद इसी सोमवार को प्रदेश की भाजपा सरकार ने किसानों के हित में एक अन्य अहम कदम उठाते हुए गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी कर दी। इस फैसले का असर भी लगभग दो दर्जन सीटों पर साफ तौर पर दिखेगा।
मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने की घोषणा कर दी। वैसे पंडा-पुरोहित समाज व हक-हकूकधारियों के रुख और विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार का यह कदम अपेक्षित ही था, लेकिन इससे विपक्ष की रणनीति को झटका तो लग ही गया। मुख्य विपक्ष कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी भी आगामी विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे पर भाजपा की घेराबंदी की पूरी तैयारी कर चुकी थी। देखा जाए तो पंडा-पुरोहित समाज कुछ ही विधानसभा सीटों पर भाजपा की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित करने की स्थिति में है, लेकिन इनकी भूमिका को राजनीतिक गलियारों में ब्राह्मणों के प्रतिनिधित्व के तौर पर देखा जा रहा था। इसी कारण भाजपा के लिए इसका आकलन व्यापक राजनीति प्रभाव के रूप में किया जा रहा था।कांग्रेस और आम आदमी पार्टी लगातार कहती आ रही थीं कि वे सत्ता में आते ही बोर्ड को समाप्त कर देंगे। इससे भाजपा भी अछूती नहीं रही। इसके अलावा भाजपा के कई बड़े नेता शीर्ष नेतृत्व तक यह बात पहुंचाने में सफल रहे कि अगर देवस्थानम बोर्ड पर कदम नहीं खींचे गए तो इसका नुकसान पार्टी को हो सकता है। यही नहीं, संघ परिवार भी सैद्धांतिक रूप से इसके पक्ष में नहीं रहा। सबसे महत्वपूर्ण बात, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों से विशेष जुड़ाव रहा है। केदारनाथ धाम का पुर्ननिर्माण अंतिम चरण में है और अब बदरीनाथ धाम पर सरकार ध्यान केंद्रित कर रही है। चारधाम आल वेदर रोड और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन जैसी केंद्रीय परियोजनाएं उत्तराखंड के लिए बहुत अहमियत रखती हैं। बोर्ड भंग न करने की स्थिति में भाजपा को इस सबका कितना लाभ मिल पाता, इसे लेकर भी पार्टी में शंका थी।
पंडा-पुरोहित समाज और ब्राह्मण भाजपा के साथ पारंपरिक रूप से जुड़े हुए माने जाते हैं। देवस्थानम बोर्ड को लेकर पार्टी का कोर वोट छिटके, भाजपा ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थी। यही वे तमाम कारण रहे कि मुख्यमंत्री धामी ने चुनाव के मौके पर इस विषय पर निर्णय लेने में वक्त नहीं गंवाया। यह बात अलग है कि भाजपा सरकार के इस कदम ने विपक्ष को अपनी रणनीति बदलने को मजबूर कर दिया है। जिस विषय को कांग्रेस अपने घोषणापत्र तक में शामिल करने को तैयार थी, उसका समाधान कर धामी सरकार ने विपक्ष को नए सिरे से रणनीति बनाने को बाध्य कर दिया।भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा, सबकी भावनाओं को जानने और समझने के बाद यह फैसला लिया गया। इस विषय पर विपक्ष जिस तरह राजनीति कर रहा था, इसका लाभ उसे नहीं मिलेगा। लोकतंत्र में कोई निर्णय अंतिम नहीं होता। सब में बातचीत और संशोधन की गुंजाइश रहती है। देवस्थानम बोर्ड के मसले पर वहां की जन भावनाएं सामने आईं, उसे देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। अब इसमें विपक्ष को भी खुश होना चाहिए।पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने कहा कि देवस्थानम बोर्ड देवभूमि के तीर्थ पुरोहितों के अधिकारों पर कुठाराघात था। आखिरकार कांग्रेस के दबाव में सरकार को फैसला वापस लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। प्रदेश की भाजपा सरकार ने जन हित के बजाय सत्ता के मद में चूर होकर फैसले किए हैं। कांग्रेस ने आम जन की आवाज बुलंद की। जनता और हक-हकूकधारियों का असंतोष बढ़ा तो सरकार को कदम पीछे खींचने पड़ गए।