उत्तराखंड, छोटा सा सूबा। भाजपा और कांग्रेस, इन दोनों ही पार्टियों के इर्द गिर्द पूरी सियासत घूमती है। कांग्रेस ने पिछले 20 सालों में 10 साल सत्ता सुख भोगा, लेकिन इन दिनों दून से दिल्ली तक पार्टी के बुरे दिन चल रहे हैं। संगठन की कमान थामने के ढाई साल बाद तो सूबाई मुखिया प्रीतम सिंह ने टीम बनाई 242 सदस्यों की लेकिन एलान होते ही जोर का झटका जोर से जा लगा। धारचूला से विधायक हरीश धामी ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। नाराजगी इस बात की कि सचिव क्यों बना दिया।
कई दिन बवाल के बाद शनिवार को पता चला कि यह तो हरदा, यानी हरीश रावत की बात को मिसअंडरस्टैंड करने का नतीजा था। हरदा ने महासचिव के लिए नाम दिया लेकिन सूची में ‘महा’ गायब हो गया। हफ्ते भर घमासान के बाद अब सब क्लियर हुआ। देखते हैं धामी के तेवर कब शांत होते हैं।लाइमलाइट से दूर रहे बंशीधर भगत भाजपा प्रदेश संगठन के मुखिया बनते ही फुल फॉर्म में आ गए हैं। देश की सबसे अनुशासित पार्टी भाजपा मानी जाती है तो लाजिमी तौर पर अध्यक्ष का अनुशासन का अनुपालन कड़ाई से करने का फरमान तो बनता ही है।
यह तो ठीक, लेकिन भगत ज्यादा चर्चा बटोर रहे हैं मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर दिए जा रहे बयानों से। हालांकि वह स्वीकारते हैं कि यह मुख्यमंत्री का अधिकार है कि किसे और कितने मंत्री बनाएं, लेकिन फिर भी कहने से नहीं चूक रहे कि अब तो मंत्रिमंडल में खाली तीन सीटों को भर ही दिया जाना चाहिए। भगत स्वयं सूबे में पार्टी के वरिष्ठ विधायक हैं। अध्यक्ष बनने से पहले वह खुद मंत्री पद के दावेदार थे।
अब अगर सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि भगत मंत्री पद से वंचित विधायकों के दर्द को जुबां दे रहे हैं तो शायद यह गलत नहीं। स्मार्टफोन, यानी मोबाइल किसी बला से कम नहीं। अभिभावकों से पूछिए, बच्चों को मोबाइल से चिपके देख हरदम ब्लड प्रेशर हाई रहता है। ऐसा ही कुछ अपनी त्रिवेंद्र सरकार के दो छोटे मंत्रियों के मामले में भी है। पिछले दिनों हायर एजुकेशन देख रहे राज्य मंत्री धन सिंह रावत ने कॉलेजों में मोबाइल पर पाबंदी का एलान क्या किया कि बवाल खड़ा हो गया। किसी तरह जनाब ने सफाई दे मामला संभाला।