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उत्तरकाशी जिले की तीन विधानसभा सीटों पर स्वयं को मजबूत करने में जुटी कांग्रेस को अंतर्कलह से भी जूझना पड़ सकता; जाने पूरी खबर

उत्तरकाशी जिले की तीन विधानसभा सीटों पर स्वयं को मजबूत करने में जुटी कांग्रेस को अंतर्कलह से भी जूझना पड़ सकता है। उत्तरकाशी जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण के कांग्रेस में शामिल होने के बाद माना जा रहा है कि पार्टी यमुनोत्री सीट से उन पर दांव खेल सकती है। बिजल्वाण की पार्टी में वापसी से इस सीट पर पहले से तैयारी कर रहे पूर्व प्रत्याशी संजय डोभाल समर्थकों में असंतोष देखा जा रहा है। इस असंतोष पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।कांग्रेस उत्तरकाशी जिले में अपनी मजबूत होती पकड़ से उत्साहित है। 2017 में जब कई पर्वतीय जिलों में कांग्रेस एक भी सीट जीतने को तरस गई थी, तब भी उत्तरकाशी जिले की तीन में से एक सीट उसके खाते में आई थी। यह दीगर बात है कि पुरोला सुरक्षित सीट से कांग्रेस विधायक रहे राजकुमार अब भाजपा का दामन थाम चुके हैं। पुरोला सीट पर मिले इसे झटके का जवाब कांग्रेस ने दोहरा प्रहार करते हुए दिया है। भाजपा पर पलटवार करते हुए पूर्व विधायक मालचंद को कांग्रेस अपने पाले में खींच लाई।

मालचंद का पुरोला में अच्छा जनाधार माना जाता है। इसी तरह पहले कांग्रेस में रहे और बाद में निर्दलीय चुनाव लड़कर उत्तरकाशी जिला पंचायत अध्यक्ष बने दीपक बिजल्वाण को भी पार्टी में लाया गया है। बिजल्वाण मूल रूप से पुरोला विधानसभा क्षेत्र हैं और उनकी पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि का लाभ कांग्रेस को पुरोला सीट पर भी मिलना तकरीबन तय माना जा रहा है। पुरोला सीट पर कांग्रेस ने भाजपा के लिए दोहरी चुनौती पेश कर दी है। हालांकि बिजल्वाण के यमुनोत्री सीट से चुनाव लड़ने की संभावना जताई जा रही है।यमुनोत्री सीट पर पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी संजय डोभाल 2022 के चुनाव के लिए तैयारी कर रहे हैं। 2017 में संजय सिर्फ 5960 मतों के अंतर से पराजित हुए थे। अब संजय और समर्थकों को अंदेशा है कि बिजल्वाण की कांग्रेस में एंट्री से टिकट को लेकर उनकी दावेदारी कमजोर पड़ जाएगी। यही वजह है कि कांग्रेस के भीतर एक धड़ा बिजल्वाण को शामिल करने का विरोध करता रहा है। इसे पार्टी क्षत्रपों के बीच खींचतान के रूप में भी देखा जा रहा है। चुनाव के मौके पर कांग्रेस के भीतर धड़ेबंदी मुखर हो गई है। अभी कांग्रेस के सामने अंतर्कलह से पार पाने की चुनौती भी खड़ी हो गई है।

 

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