पिछले साल 22 मार्च को कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए जनता कफ्र्यू घोषित किया गया तो सड़कें सूनी पड़ी चुकी थीं और तमाम प्रतिष्ठान भी बंद थे। इसका गहरा असर पर्यावरण पर दिखाई दिया और वायु प्रदूषण में सामान्य दिनों की अपेक्षा 81 फीसद तक कमी आ गई थी। किसी प्रतिबंध के बहाने वायु प्रदूषण में गिरावट की उम्मीद नहीं की जा सकती। सिर्फ इससे यह सीख लेनी चाहिए कि हमारी गतिविधियों के चलते ही वायु प्रदूषण मानक से अधिक रहता है और हमें किसी भी ऐसी गतिविधियों को नियंत्रित करना होगा, जो प्रदूषण बढ़ाने के कारक हैं।
आमतौर पर दून में वायु प्रदूषण का ग्राफ मानक से दो गुना या इससे से भी अधिक रहता है। जनता कफ्र्यू के दिन किसी ने भी सोचा नहीं होगा कि यह आंकड़ा 80 फीसद तक नीचे आ जाएगा। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 14 मार्च, 2020 तक के आंकड़े बताते हैं कि दून में पीएम-10 का अधिकतम स्तर 193.82 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (मानक 100) आइएसबीटी पर था। वहीं, पीएम-2.5 का अधिकतम स्तर इसी साइट पर 97.69 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (मानक 60) था। जनता कफ्र्यू के दिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रदूषण के डाटा एकत्रित नहीं किए, मगर कुछ आधिकारिक वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक दून में पीएम-2.5 का स्तर 20 पर आ गया था। वहीं, पीएम-10 की मात्रा भी 35 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर सिमटी रही। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रिकॉर्ड में कभी भी ऐसी गिरावट कभी देखने को नहीं मिली थी।
पीएम-10 का अधिकतम स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होना चाहिए, जबकि यह स्तर जनता कर्फ्यू के दिन 65 फीसद कम रहा। वहीं, पीएम-2.5 का स्तर मानक से और भी कम 66 फीसद रहा।