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‘हरीश रावत और उनके चंद करीबियों को छोड़ दें तो कांग्रेस से भाजपा में आने वालों की कतार लगी है; अनिल बलूनी

भाजपा के दिग्गज अनिल बलूनी देहरादून आए और आते ही कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ धर दिया। उत्तराखंड से राज्यसभा सदस्य बलूनी बोले, ‘हरीश रावत और उनके चंद करीबियों को छोड़ दें तो कांग्रेस से भाजपा में आने वालों की कतार लगी है। स्थिति यह है कि पार्टी को हाउसफुल का बोर्ड लगाना पड़ सकता है।’ पांच साल पहले सियासी पलायन का गहरा दंश झेल चुके हरदा इससे तिलमिला उठे। बोले, ‘भाजपा को अपना घर संभाल कर रखना चाहिए। लगता है अब बलूनी घबरा गए हैं।’ साथ ही कटाक्ष किया कि बलूनी दलबदल कराने में पारंगत हो गए हैं, लेकिन उनकी दलबदल वाली छवि पर उन्हें अफसोस है। कुछ दिन पहले तक हरदा भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख बलूनी के फैन हुआ करते थे। बलूनी में उन्हें भविष्य की संभावनाएं दिखती थीं, मगर जब खुद का ही भविष्य दांव पर लग गया तो तिलमिलाहट लाजिमी है।उत्तराखंड में पांचवें विधानसभा चुनाव के लिए उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। अब तक दो-दो बार सत्ता में रही कांग्रेस और भाजपा, दोनों पूरी शिददत के साथ मोर्चे पर डट गए हैं। पहली बार आम आदमी पार्टी भी तैयारी के साथ दावेदारी पेश करती दिख रही है। इन सबके बीच वे तीन अहम खिलाड़ी मैदान से नदारद नजर आ रहे हैं, जो पहले अपना खाता खोल चुके हैं। बहुजन समाज पार्टी ने पहले तीन विधानसभा चुनाव में तीसरी सियासी ताकत के तौर पर सिक्का जमाया, जबकि उत्तराखंड क्रांति दल, बसपा के बाद चौथे नंबर पर रहा। अलबत्ता समाजवादी पार्टी विधानसभा तो नहीं, मगर 2004 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार सीट पर परचम फहरा चुकी है। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव ने इस कदर ताबड़तोड़ परफार्मेंस दी कि सपा तो छोडि़ए, बसपा और उक्रांद का भी सफाया हो गया। शायद इसीलिए इस बार ये तीनों सीन से गायब हैं।

सत्तासीन भाजपा उम्मीद कर रही है कि इस बार सूबे के विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन का 20 साल पुराना मिथक टूटेगा और फिर उसी की सरकार बनेगी। अब तक के चार चुनाव में तो वोटर ने हर बार सत्ता बदली है। कांग्रेस को इस मिथक के कायम रहने का भरोसा है, लिहाजा पार्टी कोशिश कर रही है कि उसके 11 के आंकड़े में जोरदार उछाल नजर आए। इस सबके बीच भाजपा के सूबाई मुखिया मदन कौशिक संगठन के मोर्चे पर लोहा लेते दिख रहे हैं, तो उधर कांग्रेस के अध्यक्ष गणेश को सहारा देने के लिए उनके चार कार्यकारी भी हैं। अब यह बात दीगर है कि उनमें से एक गणेश परिक्रमा छोड़ विपरीत दिशा पकड़े हुए हैं। कौशिक सरकार में अपना कौशल पहले ही दिखा चुके हैं, इस बार उनकी सांगठनिक क्षमता का लिटमस टेस्ट होने जा रहा है। अगर मैदान मार लिया तो कद बढऩा तय है।चुनाव नजदीक, तो पालाबदल का मौसम चालू है। कुछ भविष्य सुरक्षित करने को पार्टी बदल रहे हैं, यह तो ठीक, मगर दिक्कत उन्हें है, जिन्होंने पहले कभी पार्टी बदली थी। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं, पांच साल पहले की ही बात है। कांग्रेस के 11 विधायक भाजपा में दाखिल हुए थे। पूरा सम्मान मिला, विधानसभा चुनाव में टिकट और कैबिनेट बर्थ भी। अब कुछ तो अपनों के भविष्य की खातिर खामोश हैं, मगर दो-तीन खासे मुखर हैं। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज के नाम तो जगजाहिर हैं। दोनों कुछ छिपाते भी नहीं, लेकिन अब इनमें यशपाल आर्य का नाम भी जोड़ा जा रहा है। आर्य ने कभी नाराजगी सार्वजनिक रूप से जाहिर नहीं की। वह तो सुबह-सवेरे मुख्यमंत्री धामी आ पहुंचे नाश्ते के लिए। अब कहने वालों को कौन लगाम लगाए, इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट कर दिया कि बे्रकफास्ट डिप्लोमेसी के तहत यह सब कुछ हुआ।

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