उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा के प्रथम सत्र में सदन दो दिन में 7.23 घंटे चला। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने सत्र के अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने के बाद पत्रकारों से बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने सदन की कार्यवाही के सुचारू एवं शांतिपूर्वक संचालन के लिए सभी सदस्यों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।विधानसभा की पहली महिला अध्यक्ष खंडूड़ी ने कहा कि उन्होंने पीठ के रूप में अपने संवैधानिक कर्तव्य का सम्यक निर्वहन करते हुए लोकतांत्रिक प्रथाओं एवं परंपराओं को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।उन्होंने कहा कि संवाद, सहयोग, सौहार्द्र व सर्वपक्ष समाधान के साथ सदन का कुशल संचालन करते हुए वह लोकतंत्र को मजबूत करने का प्रयास करेंगी। वह चाहती हैं कि अपने कार्यों से वह सदन में छाप छोंड़ें। उन्होंने कहा कि सदन में महिला सदस्यों को भरपूर अवसर मिले, यह उनकी प्राथमिकता है।
पहली बार सदन के संचालन के अनुभव को साझा करते हुए खंडूड़ी ने कहा कि अध्यक्ष पीठ पर बैठकर उन्हें गर्व की अनुभूति हो रही थी, साथ ही चुनौती भी थी। राज्यपाल के अभिभाषण एवं उस पर चर्चा, लेखानुदान के पारण व विधायी कार्यों के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष ने पूर्ण सहयोग दिया।कांग्रेस विधायकों ने बुधवार को सदन के बाहर हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र की कानून-व्यवस्था को लेकर धरना दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र में पुलिस अकारण कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं का उत्पीडऩ कर रही है, इसे तुरंत रोका जाए। इसके बाद कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने इस विषय को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समक्ष भी रखा।बुधवार को सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले कांग्रेसी विधायक सदन के बाहर धरने पर बैठे। उनके हाथों में पट्टिकाएं थी जिनमें लिखा था कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्पीडऩ बंद करो। कुछ विधायक राष्ट्रपति महात्मा गांधी और बाबा साहेब आंबेडकर के चित्र हाथों में लिए हुए थे। इस दौरान विधायक हरिद्वार ग्रामीण अनुपमा रावत ने कहा कि उनके विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का लगातार उत्पीडऩ किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि जब वह सदन में थी तब उनके क्षेत्र में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का घर तोड़ा गया। उन्होंने पुरुष पुलिस द्वारा पीडि़त महिला पर बल प्रयोग का भी आरोप लगाया। धरना देने वालों में विधायक भुवन चंद्र कापड़ी, हरीश धामी, वीरेंद्र कुमार, फुरकान अहमद और मनोज तिवारी शामिल थे।सरकार के महत्वपूर्ण विभाग विकास कार्यों की धनराशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र देने में लापरवाही बरत रहे हैं। 31 मार्च, 2021 तक 872.65 करोड़ धनराशि के 119 उपयोगिता प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराए गए। विधानसभा सत्र के दौरान बुधवार को भारत के नियंत्रक महालेखाकार की ओर से प्रदेश सरकार के वर्ष 2020-21 के वित्त लेखे एवं विनियोग लेखे सदन के पटल पर रखे गए।इसमें विभागों की वित्तीय व्यवस्था की खामियां बताई गईं। वित्त लेखे में उपयोगिता प्रमाणपत्र देने में विभागों के स्तर पर बरती जा रही हीलाहवाली सामने आई है। वर्ष 2018-19 तक तीन, 2019-20 तक आठ और 2020-21 तक 108 उपयोगिता प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराए गए। इन अप्राप्त उपयोगिता प्रमाणपत्रों की धनराशि क्रमश: 5.46 करोड़, 20.82 करोड़ और 846.37 करोड़ है।
2017-18, 2018-19 और 2019-20 में पंचायती राज, शहरी विकास, उन विभागों में शामिल रहे, जिन्होंने उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किए। विभागों की इस लापरवाही से विकास कार्यों पर होने वाले खर्च और लाभार्थियों को लाभ मिलने पर सवाल खड़े होने स्वाभाविक हैं।इसी तरह आहरण अधिकारियों के व्यक्तिगत जमा खातों में वर्ष 2020-21 के दौरान 5.53 करोड़ की राशि राज्य समेकित निधि से हस्तांतरित की गई। इन खातों के 45 प्रशासकों में से किसी ने भी शेष राशि का मिलान और सत्यापन कोषागारों की शेष राशि से नहीं कराया। कोषागार अधिकारियों को वार्षिक सत्यापन प्रमाणपत्र भी प्रस्तुत नहीं किए गए। वित्त लेखे की रिपोर्ट में कहा गया कि 20 कोषागार निरीक्षणों से 26 प्रशासकों के व्यक्तिगत जमा खातों के अंतर्गत 26 योजनाओं में 18 लाख की राशि तीन साल से निष्क्रिय रही।