सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि कोरोना से हुई मौत पर पीड़ित परिवारों को हर हाल में आर्थिक मदद मिलनी चाहिए। कितनी राशि दी जाए यह सरकार तय करे। कोर्ट ने सरकार व राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को पीड़ित परिवारों की मदद के लिए छह हफ्तों में न्यूनतम मानदंड के नए दिशा-निर्देश तय करने को कहा।
जस्टिस अशोक भूषण के जस्टिस एमआर की विशेष पीठ ने कहा कि सरकार को मुआवजे की राशि सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तय करनी होगी। पीठ ने वकील रीकव कंसल और गौरव कुमार बसल की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। इसमें मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये देने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 21 जून अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कोर्ट ने चार लाख रुपये मुआवजा तय करने की मांग खारिज करते हुए कहा, हम विशेष राशि तय नहीं कर सकते। किसी भी देश या राज्य सरकारों के पास असीमित संसाधन नहीं हैं। यह सरकार को तय करना है।
कोर्ट ने कहा, मृत्यु प्रमाणपत्र के दिशा निर्देश में स्पष्ट किया जाना चाहिए कि अगर संक्रमित होने के दो या तीन महीने बाद भी किसी की मौत होती है तो प्रमाणपत्र में कारण कोरोना ही बताया जाए।कोर्ट ने केंद्र सरकार को कोरोना से जान गंवाने वालों के परिजनों के लिए वित्त आयोग के प्रस्ताव के अनुरूप बीमा योजना बनाने का भी आदेश दिया।
पीठ ने केंद्र की उस दलील को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें कहा था कि आपदा प्रबंधन कानून की धारा 12 अनिवार्य प्रावधान नहीं है। पीठ ने कहा, धारा-12 में ‘होगा’ शब्द इस्तेमाल है, जिसका सीधा निष्कर्ष निकलता है कि यह प्रावधान अनिवार्य है। राहत के न्यूनतम मानक तय करना राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का कर्तव्य है। पर, ऐसा हुआ नहीं। पीठ ने लापरवाही पर फटकार लगाई। कहा, अफसर यह पालन करने में नाकाम रहे।
कोर्ट ने कोरोना के बाद होने वाली बीमारियों जैसे फंगस से मौत पर भी मुआवजे की मांग की याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।