



सीजन शादी का है इसलिए पंडित जी के भाव काफी बढ़े हुए हैं. वे कुंडलियां में व्यस्त हैं. यह और बात है कि छत्तीस गुण मिलने वाले जोड़े में भी कई आगे एक-दूसरे पर खुद को न समझ पाने का आरोप लगाएंगे. खैर हमारी परंपरा ऐसी है कि कुंडलियों के मिलान की व्यवस्था में इतनी जल्दी परिवर्तन नहीं आने वाला. लेकिन हमें ग्रह-दशा मिलाने से ज्यादा भावी दूल्हे-दुल्हनों की मेडिकल कुंडली मिलाने को लेकर जागरूक होना चाहिए, क्योंकि ऐसा न कर हम हर साल हजारों जोड़ों को अंधकार भरा भविष्य दे रहे हैं. अगर हम विवाह तय करने से पहले दूसरे पक्ष की आर्थिक-सामाजिक स्थिति जांचने के साथ-साथ उसकी मेडिकल कुंडली भी जांच लें तो, यह एक नए सामाजिक और खुशहाल युग का सूत्रपात कर सकता है.
कितनी जरूरी है मेडिकल कुंडली: मेडिकल फिटनेस प्रमाणपत्र कितना जरूरी है इसका जवाब एक शब्द में अनिवार्य ही हो सकता है. खासकर इस बिंदु के आलोक में कि जोड़े में जीन की अदला-बदली से हजारों फैमिली जीवन भर परेशान रहते हैं. मेडिकल कुंडली मिलाकर हमें आने वाले बच्चों में थैलीसिमिया, हीमोफीलीया, कोएलिक या हीमोग्लोबीनोपैथी की आशंका का पता चल सकेगा और इन रोगों को नियंत्रित किया जा सकेगा. जन्म कुंडली की जगह अगर रक्त कुंडली की जांच हो तो कई आनुवांशिक बीमारियों से बचा जा सकता है. फिर एड्स जैसी बीमारियों का प्रसार भी इससे काफी हद तक रूक सकता है. गौर करने वाली बात है कि एक सीमा के बाद आनुवांशिक बीमारियों का इलाज संभव नहीं हो पाता इसलिए ऐसे व्यक्तियों के बीच विवाह संबंध स्थापित होने को रोकना ही बेहतर होता है जिनमें दोनों में एक ही प्रकार का जीन मौजूद होता है. ब्लड में मौजूद आरएच फैक्टर की जांच कर कई समस्याओं से निपटा जा सकता है. आरएच निगेटिव स्त्रियों के पति अगर आरएच पॉजिटिव हों तो ऐसी दंपतित्त के बच्चे काफी परेशानियां पैदा करते हैं.
थैलीसीमिया का हो सकता है खात्मा: थैलीसीमिया जैसा रोग जिससे आज प्रतिवर्ष हजारो बच्चे मरते हैं, को खत्म करने का एकमात्र उपाय विवाह पूर्व मेडिकल चेकअप है. दरअसल हमारे शरीर में 23 जोड़े यानी 46 क्रोमोजोम रहते हैं. इनमे से अगर एक जीन दोषयुक्त हो तो जोड़े का सामान्य जीन इस त्रुटि को सामने आने नहीं देता और न ही इससे कोई नुकसान होता है. ऐसे जीन को रिसेसिव और पीड़ित को साइलेंट कैरियर कहते हैं. अगर पति-पत्नी दोनों साइनेंट कैरियर हों तो इनके बच्चों को थैलीसीमिया होने की आशंका 25 फीसद तक होती है. साफ है कि विवाह पूर्व चेकअप द्वारा ऐसी स्थिति आने से आसानी से बचा जा सकता है. आज डायबिटीज और कैंसर पीड़ितों की एक बड़ी आबादी आनुवांशिक कारणों से प्रभावित है. चिकित्सकों को कहना है कि अगर माता-पिता दोनों के वंशवृक्ष में ऐसी बीमारियों क जीन मौजूद रहे हैं तो अगली पीढ़ी को इन रोगों के होने की आशंका बढ़ जाती है.