शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि वो तीन महीनों के अंदर ये फैसला करे कि नफरत फैलाने वाले भाषण के लिए नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज होनी चाहिए या नहीं। पिछले साल दिल्ली में दंगों के दौरान कई नेताओं पर हेट स्पीच देने का आरोप लगा था। दंगों से पीड़ित परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई कि उन नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज की जाए जिन्होंने नफरत फैलाने वाले भाषण दिए थे। लेकिन कोर्ट ने इस पर कोई भी फैसला देने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामला पहले से ही हाई कोर्ट में लंबित है. लिहाजा हाई कोर्ट को इस मामले पर फैसला देने के लिए तीन महीने का समय दिया गया।
अर्जी न्यायमूर्ति एल एन राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की बेंच के सामने सुनवाई के लिए आई। इस अर्जी में भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था, जिसने लोगों को पिछले साल कथित तौर पर हिंसा में शामिल होने के लिए उकसाया।
हिंसा के पीड़ित तीन याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने बेंच को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल मार्च में आदेश के बावजूद इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है. बेंच ने कहा, ‘हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर इस रिट याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं. रिट याचिका खारिज की जाती है।