गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने में ‘युवा उत्तराखंड’ की अहम भूमिका रही। प्रदेश के किशोरावस्था पार कर युवावस्था की दहलीज पर कदम रखने के साथ ही गैरसैंण को लेकर आंदोलन तेज हो गए, जिसकी कमान युवाओं ने ही संभाली। पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रदेशभर से गैरसैंण राजधानी की मांग उठने लगी थी।राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी बनाने की परिकल्पना की गई थी। वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड अलग राज्य बना तब भी गैरसैंण राजधानी की मांग हुई। हालांकि सरकार ने देहरादून में सुविधाएं उपलब्ध होने का हवाला देते हुए इसे अस्थाई राजधानी बनाया। इसके बाद समय-समय पर अलग-अलग सरकारों ने गैरसैंण राजधानी को लेकर फैसले लिए, लेकिन यहां स्थाई या ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया।
वर्ष 2017 में उत्तराखंड ने युवावस्था में कदम रखा। इसके बाद से ही राज्य में गैरसैंण आंदोलन की कमान युवाओं ने अपने हाथ में ली और गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक पक्ष में माहौल बनाने की कवायद में जुट गए। मोहित डिमरी, प्रदीप सती, दीपक चमोली, भगवती प्रसाद, सत्यपाल नेगी, केपी ढौंडियाल, विनोद डिमरी, प्यार सिंह नेगी, पुरुषोत्तम चंद्रवाल, दीपक बेंजवाल, लक्ष्मण सिंह नेगी, नरेश भट्ट, शत्रुघन सिंह नेगी, रमेश बेंजवाल, कुलदीप राणा, राय सिंह रावत, लुसुन टोडरिया, सचिन थपलियाल जैसे युवाओं ने गोष्ठियां, रैलियां, यात्राएं, जनसभाएं आंदोलन से लोगों को जोड़ने की कवायद शुरू की। नतीजा यह रहा कि धीरे-धीरे अभियान से लोग जुड़ते गए और इसने पूरे प्रदेश में आंदोलन का रूप ले लिया।
-प्रदेश के पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में आबादी का संतुलन बनाने के लिए गैरसैंण राजधानी की जरूरत है। हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंह नगर जैसे मैदानी जिलों का जनसंख्या घनत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। वहीं, पहाड़ी क्षेत्र लगातार खाली हो रहे हैं। हरिद्वार में प्रतिवर्ग किमी 817 के मुकाबले चमोली में महज 49 और उत्तरकाशी में 41 लोग रह गए हैं।
-खाली होते पहाड़ों को बचाने के लिए भी गैरसैंण में राजधानी जरूरी है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य के 16793 गांवों में 1053 पूरी तरह खाली हो चुके हैं। 400 से ज्यादा गांव ऐसे हैं, जहां दस से भी कम लोग रह गए हैं। मैदान और पहाड़ के बीच आबादी की खाई बढ़ती जा रही है। 12 प्रतिशत मैदानी जिलों में प्रदेश की 53 फीसदी और 88 प्रतिशत पहाड़ी जिलों में कुल 47 फीसदी आबादी निवासी करती है।
-पहाड़ों को राजनीतिक रूप से मजबूत करने के लिए भी गैरसैंण राजधानी की लंबे समय से मांग की जा रही थी। राज्य गठन के समय पहाड़ में 40 विधानसभा सीटें थी, जो 2001 की जनगणना के बाद महज 34 ही रह गई। वहीं, मैदान में सीटें 30 से बढ़कर 36 हो गई। अब 2011 की जनगणना के मुताबिक परिसीमन हुआ तो पहाड़ से सात विधानसभा सीटें और कम हो जाएंगी। इससे विधानसभा में पहाड़ का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा।